कृषि विधेयक थोड़ा अच्छा है और थोड़ा ख़तरनाक बाकी किसानों की लंका समर्थन मूल्य वाले मामले में लग सकती है?
शादाब सलीम
सरकार अपने विधेयक में कह रही है- अब अनाज आवश्यक वस्तु अधिनियम का हिस्सा नहीं होगा और जो चाहे जितना चाहे अपनी औकात के मुताबिक भंडारण करें। किसान को भी कह रही है तुम भी भंडारण करो अब भंडारण करने से कोई नहीं रोकता, भरचक भंडारण करो।
अब किसान कहाँ उसकी टापरी में भंडारण करेगा? थोड़े बहुत किसान ज़मीदार अमीर है तो भी वह कितना रख लेंगे? इसमें लाभ तो सीधे सीधे बड़े बड़े व्यापारियों को ही होना है जिनका भंडारण करने की औकात है। नंगा आदमी कहाँ से भंडार करेगा! वह तो खुद भंडारे में खा रहा है। इसमें लंका लगेगी आम जनता की, महंगे महंगे भाव पर अनाज टिकाया जाएगा।
दूसरी बात समर्थन मूल्य समाप्त नहीं होगा बल्कि रहेगा। सरकार गेंहू खरीदेगी तो सही पर ज़बान देकर नहीं खरीदेगी, पत्थर की लकीर वाला मामला खत्म है। मतलब कंट्रोल की दुकानों पर भी जल्द धकापेल मचने वाली है और एक रुपये किलो गेंहू वाला मामला जल्द निपटने वाला है, लगभग ऐसी संभावना है क्योंकि जब खरीदेंगे नहीं तो देंगे कहाँ?
तीसरा एक काम अच्छा हुआ है कि संविदा किसानी को बढ़ावा दिया जा रहा है मतलब किसान से कंपनी एक अग्रीमेंट करके एक भाव तय कर लेगी और चार महीने बाद फसल आने पर उस ही भाव में फसल तुलवा लेगी। जितनी फसल होगी पूर्व में तय किये भाव से कंपनी भुगतान कर देगी।
विधेयक थोड़ा अच्छा है और थोड़ा ख़तरनाक बाकी किसानों की लंका समर्थन मूल्य वाले मामले में लग सकती है और एक रुपये किलो गेंहू वालों को झोली झंडे उठाने पड़ सकते है।