लाठी के जरिए किसानों की आवाज़ दबाने की कोशिश
अंकुर मौर्य
हमारे प्रधानमंत्री जी को लोगों के कपड़े देखकर ही पता लगा लेते है कि हिंसा फैंलाने वाले लोग कौन है.. तो क्या हमारे प्रधानमंत्री जी इस तस्वीर में देखकर ये बता पायंगे की किसानों पर लाठी चलाते ये लोग कौन है.??
तस्वीर आज की है.. दरअसल आज कृषि अध्यादेशों के विरोध में हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के पिपली मंडी परिसर में किसान रैली बुलाई गई थी जिसमें बड़ी संख्या में किसान घरों से निकले थे लेकिन रास्ते मे ही किसानों पर लाठीचार्ज करदी गयी.. किसानों की आवाज़ लाठी के जरिए दबाने की कोशिश की गयी.. उन अन्नदाताओं के शरीर से खून निकाला गया जो ना होते तो पूरे लॉकडाऊन में हम-सब लोग भूखे मरते..
आज वो किसान जब अपने हक के लिए आवाज़ उठा रहा है तो उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर मारा जा रहा है.. लेकिन जैसी उम्मीद थी उसी प्रकार ही मौजूदा मीडिया के लिए इन किसानों के लिए उनके कैमरे और स्क्रीन में जगह नहीं है..
उन्हें रिया से फुर्सत मिली तो कंगना की फिक्र होने लगी है.. लेकिन जिस तरह से कल रोज़गार के लिए युवाओं ने दिया-मोम्बात्ति जलाकर विरोध प्रदर्शन किया आज किसान सड़को पर उतरे उसे देख कर यही लगता है कि.. आने वाले समय में ये लाठियां शायद कम पड़ जाए..
NCRB की एक रिपोर्ट कहती है कि 2019 में करीब 43,000 किसानों और दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की है...इस रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में रोजाना 28 किसानों (खेत मालिक और कृषि मजदूर) और 89 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की है.. इन किसानों पर प्रेम तभी उमड़ेगा जब कोई चुनाव नज़दीक होगा.. बड़े-बड़े वादे किए जाएंगे नहीं तो लाठियां बजायी जाएंगी..
हमारे प्रधानमंत्री जी को लोगों के कपड़े देखकर ही पता लगा लेते है कि हिंसा फैंलाने वाले लोग कौन है.. तो क्या हमारे प्रधानमंत्री जी इस तस्वीर में देखकर ये बता पायंगे की किसानों पर लाठी चलाते ये लोग कौन है.??
तस्वीर आज की है.. दरअसल आज कृषि अध्यादेशों के विरोध में हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के पिपली मंडी परिसर में किसान रैली बुलाई गई थी जिसमें बड़ी संख्या में किसान घरों से निकले थे लेकिन रास्ते मे ही किसानों पर लाठीचार्ज करदी गयी.. किसानों की आवाज़ लाठी के जरिए दबाने की कोशिश की गयी.. उन अन्नदाताओं के शरीर से खून निकाला गया जो ना होते तो पूरे लॉकडाऊन में हम-सब लोग भूखे मरते..
आज वो किसान जब अपने हक के लिए आवाज़ उठा रहा है तो उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर मारा जा रहा है.. लेकिन जैसी उम्मीद थी उसी प्रकार ही मौजूदा मीडिया के लिए इन किसानों के लिए उनके कैमरे और स्क्रीन में जगह नहीं है..
उन्हें रिया से फुर्सत मिली तो कंगना की फिक्र होने लगी है.. लेकिन जिस तरह से कल रोज़गार के लिए युवाओं ने दिया-मोम्बात्ति जलाकर विरोध प्रदर्शन किया आज किसान सड़को पर उतरे उसे देख कर यही लगता है कि.. आने वाले समय में ये लाठियां शायद कम पड़ जाए..
NCRB की एक रिपोर्ट कहती है कि 2019 में करीब 43,000 किसानों और दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की है...इस रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में रोजाना 28 किसानों (खेत मालिक और कृषि मजदूर) और 89 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की है.. इन किसानों पर प्रेम तभी उमड़ेगा जब कोई चुनाव नज़दीक होगा.. बड़े-बड़े वादे किए जाएंगे नहीं तो लाठियां बजायी जाएंगी..