कंगना रनौत और उध्दव ठाकरे
शादाब सलीम
कंगना रनौत और उध्दव ठाकरे प्रकरण चल रहा है। इस पर कुछ संस्मरण याद आते है। आदमी के विचार अवसरों के साथ बदलते रहते हैं, जहां अवसर होते है आदमी के विचार उधर हो चलते है, सब कुछ अवसरों पर ही निर्भर करता है। परिवेश और अवसर सब कुछ बदलते है। हम आदमी को जड़ देखना चाहते है एक दम चट्टान जबकि स्थाई कुछ नहीं होता। इंसानों जितना परिवर्तनशील तो कुछ भी नहीं है वह कहाँ से कहाँ आ गया है।
कंगना किसी समय महेश भट्ट के आंगन में रहती थी, स्टार परिवार की लड़कियां ही सिनेमा में टिक पाती है ऐसे में साधारण घर से आयी कंगना ने महेश भट्ट और आदित्य चोपड़ा की मित्रता में अपना स्थान बनाया। अब उन ही लोगों के खेमे के विरोध में है।
यह सब कुछ अवसर और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अन्ना हजारे के साथ केजरीवाल आए, अन्ना तो पता नहीं कहाँ खो गए और अरविंद केजरीवाल देशभर में सिरमौर हो गए वे मोदी के विकल्प के तौर पर भी पेश किए जाते रहे है।
हरिवंश राय ने प्रगतिशील रचना मधुशाला लिखी और नेहरू के परिवार के निकट रहे और अमिताभ नरेन्द्र मोदी के पास जमा हो गए ।
उध्दव ठाकरे अपने पिता बाल ठाकरे के पद चिन्ह पर एक ज़माने तक अटल रहें और महाराष्ट्र की दक्षिणपंथी राजनीति का छोटा चेहरा रहे। जब उन्होंने अवसर पाए तो ट्रेक बदल कर निकल गए अपने धुर विरोधी खेमे से ही गठबंधन कर डाला। वह जानते थे केंद्र में एक छत्रप कुछ लोगों का प्रभुत्व है वहां उनकी चल पाना मुश्किल है और मुख्यमंत्री बनने का यही समय है अगर अब भी धूल में लठ नहीं लगाया तो उम्र खप जाएगी फिर वह यह भी जानते थे कि शरद पवार नष्ट हो रहे है शरद पवार के वोटर्स मुझे शिफ्ट हो जाते है तो एक छत्रप महाराष्ट्र पर मेरा लंबा शासन होगा।
मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना संसदीय क्षेत्र से एक साधारण से आदमी से चुनाव हार गए जबकि सिंधिया इतने साधन संपन्न है कि उनकी संपत्ति से एक हिस्सा उठा लिया तो सारे गुना की ज़मीन उनके स्वमित्व में होगी। इस व्यथा में वह कांग्रेस छोड़कर गए, संभव है अगली दफा वह गुना से फिर सांसद हो जाए। वह भारत की लोकसभा में किसी भी सूरत में बने रहना चाहते है।
किसी ज़माने में काबे में रखे बुतों को जो लोग सुरक्षा देते थे उन्होंने ही बुतों को निकाल डाला था और गुलाम बिलाल को काबे पर चढ़ने का हुक्म दिया। पैगम्बर सिरमौर हुए। फिर कुछ समय बाद उन ही लोगों ने पैगम्बर के सारे परिवार को घेरकर कत्ल कर दिया, वहां हुसैन शहीद के रूप सिरमौर हुए।
चंगेज खान मुसलमानों का लहू पीता था। फिर उस ही चंगेज़ की संतानें इस्लाम के बहुत शक्तिशाली प्रचारक के रूप में उभरी।
हिटलर ने यहूदियों को गैस के चेम्बर में भरकर मारा। फिर उस ही हिटलर के देश के लोगों ने अमेरिका का सहयोग उस समय किया जब फिलिस्तीन पर कब्ज़ा करके यहूदियों के लिए देश बसाया जा रहा था।
इस यूनिवर्स में सब कुछ बदलता रहता है। एक टक्कर में पृथ्वी जीवन पाती है और शुक्र नष्ट हो जाता है। परिस्थियां सब बदल देती है। आदमी पंथ से बंधकर कभी नहीं रहता। पंथ केवल भ्रम है
कंगना रनौत और उध्दव ठाकरे प्रकरण चल रहा है। इस पर कुछ संस्मरण याद आते है। आदमी के विचार अवसरों के साथ बदलते रहते हैं, जहां अवसर होते है आदमी के विचार उधर हो चलते है, सब कुछ अवसरों पर ही निर्भर करता है। परिवेश और अवसर सब कुछ बदलते है। हम आदमी को जड़ देखना चाहते है एक दम चट्टान जबकि स्थाई कुछ नहीं होता। इंसानों जितना परिवर्तनशील तो कुछ भी नहीं है वह कहाँ से कहाँ आ गया है।
कंगना किसी समय महेश भट्ट के आंगन में रहती थी, स्टार परिवार की लड़कियां ही सिनेमा में टिक पाती है ऐसे में साधारण घर से आयी कंगना ने महेश भट्ट और आदित्य चोपड़ा की मित्रता में अपना स्थान बनाया। अब उन ही लोगों के खेमे के विरोध में है।
यह सब कुछ अवसर और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अन्ना हजारे के साथ केजरीवाल आए, अन्ना तो पता नहीं कहाँ खो गए और अरविंद केजरीवाल देशभर में सिरमौर हो गए वे मोदी के विकल्प के तौर पर भी पेश किए जाते रहे है।
हरिवंश राय ने प्रगतिशील रचना मधुशाला लिखी और नेहरू के परिवार के निकट रहे और अमिताभ नरेन्द्र मोदी के पास जमा हो गए ।
उध्दव ठाकरे अपने पिता बाल ठाकरे के पद चिन्ह पर एक ज़माने तक अटल रहें और महाराष्ट्र की दक्षिणपंथी राजनीति का छोटा चेहरा रहे। जब उन्होंने अवसर पाए तो ट्रेक बदल कर निकल गए अपने धुर विरोधी खेमे से ही गठबंधन कर डाला। वह जानते थे केंद्र में एक छत्रप कुछ लोगों का प्रभुत्व है वहां उनकी चल पाना मुश्किल है और मुख्यमंत्री बनने का यही समय है अगर अब भी धूल में लठ नहीं लगाया तो उम्र खप जाएगी फिर वह यह भी जानते थे कि शरद पवार नष्ट हो रहे है शरद पवार के वोटर्स मुझे शिफ्ट हो जाते है तो एक छत्रप महाराष्ट्र पर मेरा लंबा शासन होगा।
मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना संसदीय क्षेत्र से एक साधारण से आदमी से चुनाव हार गए जबकि सिंधिया इतने साधन संपन्न है कि उनकी संपत्ति से एक हिस्सा उठा लिया तो सारे गुना की ज़मीन उनके स्वमित्व में होगी। इस व्यथा में वह कांग्रेस छोड़कर गए, संभव है अगली दफा वह गुना से फिर सांसद हो जाए। वह भारत की लोकसभा में किसी भी सूरत में बने रहना चाहते है।
किसी ज़माने में काबे में रखे बुतों को जो लोग सुरक्षा देते थे उन्होंने ही बुतों को निकाल डाला था और गुलाम बिलाल को काबे पर चढ़ने का हुक्म दिया। पैगम्बर सिरमौर हुए। फिर कुछ समय बाद उन ही लोगों ने पैगम्बर के सारे परिवार को घेरकर कत्ल कर दिया, वहां हुसैन शहीद के रूप सिरमौर हुए।
चंगेज खान मुसलमानों का लहू पीता था। फिर उस ही चंगेज़ की संतानें इस्लाम के बहुत शक्तिशाली प्रचारक के रूप में उभरी।
हिटलर ने यहूदियों को गैस के चेम्बर में भरकर मारा। फिर उस ही हिटलर के देश के लोगों ने अमेरिका का सहयोग उस समय किया जब फिलिस्तीन पर कब्ज़ा करके यहूदियों के लिए देश बसाया जा रहा था।
इस यूनिवर्स में सब कुछ बदलता रहता है। एक टक्कर में पृथ्वी जीवन पाती है और शुक्र नष्ट हो जाता है। परिस्थियां सब बदल देती है। आदमी पंथ से बंधकर कभी नहीं रहता। पंथ केवल भ्रम है