पीएम केयर्स और पारदर्शिता
संजय कुमार सिंह
पीएम केयर्स फंड के बारे में साकेत गोखले ने ट्वीट कर बताया है कि 31 मार्च 2020 तक के वित्त वर्ष का अंकेक्षित विवरण जारी किया है और यह पीएम केयर्स फंड के वेबसाइट पर है। इसमें बताया गया है कि यह (पृष्ठ) 1- 6 तक के वित्तीय विवरण के साथ है। पर एक से छह का यह वित्तीय विवरण अपलोड नहीं किया गया है। इस विवरण के अनुसार पीएम केयर्स में कुल राशि 30,76,62,58,096 रुपए है। शब्दों में कितना होगा समझ में नहीं आ रहा है। इसलिए नहीं लिख रहा हूं।
ऑडिट रिपोर्ट सिर्फ अंकों में है। इसके अनुसार एक साल में फंड को ब्याज से 35,32,728 रुपए और विदेशी योगदान पर ब्याज से 575 रुपए मिले हैं। पीएम केयर्स फंड ने विदेशी मुद्रा को बदलने में 2049 रुपए सर्विस टैक्स दिए (खर्च किए) है और इस हिसाब के अनुसार खाते में कुल 30,76,62,56,047 रुपए हैं। इस सूचना के अनुसार 31 मार्च 2020 को समाप्त अवधि के अंत में यह विवरण है। इसमें नहीं लिखा है कि कबसे और जाहिर है वह बाकी के पन्नों में होगा जो दिया नहीं गया है। और यही पीएम केयर्स की पारदर्शिता है।
साकेत गोखले ने इस संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखा है और छिपा लिए गए या गलती से रह गए छह पन्ने भी अपलोड करने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि अकाउंटिंग के बुनियादी मानकों के अनुसार ऑडिट रिपोर्ट के बाकी पन्ने भी मुहैया कराए जाने चाहिए। इस रिपोर्ट पर ऑडिट करने वाली कंपनी एसएआरसी एंड एसोसिएट्स की ओर से साझेदार सुनील कुमार गुप्ता ने दस्तखत किए हैं और इसपर उनकी सदस्यता संख्या तथा यूडीआईएन नंबर भी लिखा है। एक अन्य ट्वीटर उपयोगकर्ता, सीए पलाश अनिता जैन (@JainPalash12bpl) ने लिखा है कि इस रिपोर्ट में जो यूडीआईएन उल्लिखित है उसे जांचने पर पता चला कि श्री सुनील कुमार गुप्ता का ग्रॉस टर्नओवर (कारोबार) शून्य है और बाकी सारे विवरण भी शून्य हैं।
पता नहीं यह वास्तविकता है या वास्तविक जानकारी दी नहीं गई है। बहुत संभावना बाद वाले की ही है। पर यहां मुद्दा यह है कि सरकार ने ऐसे-ऐसे नियम बनाए हैं जिसका पालन सरकारी (पीएम केयर्स के) चार्टर्ड अकाउंटैंट ही नहीं कर पा रहे हैं या कर रहे हैं। आम आदमी क्या करेगा। और क्यों करे। अगर यह सूचना सही है और वाकई सारी सूचनाएं शून्य हैं तो बाकी लोगों का भी शून्य मान लेने में क्या हर्ज है और उनसे सूचना क्यों मांगी जा रही है। अगर सरकार इसपर यकीन कर सकती है तो उसे मेरी या किसी की घोषणा में शून्य सूचना पर यकीन करना चाहिए।
यह अजीब स्थिति है कि आम आदमी अपनी कमाई संपत्ति, मशीन उपकरण सब कुछ सार्वजनिक करे और सरकार जनता के पैसों का हिसाब नहीं देगी। महामारी के नाम पर एकत्र पैसे खर्च करने की बजाय लाखों रुपए ब्याज में कमा चुकी है सो अलग। हिसाब देने से बचने के कई जतन।