जानिए मोदी जी को क्यों रेलवे स्टेशन बेचने पड़ गए, एयरपोर्ट बेचने पड़ गए, आयल कंपनी बेचनी पड़ रही है?
Krishan Rumi
मोदी को रेलवे स्टेशन बेचने पड़ गए, एयरपोर्ट बेचने पड़ गए, आयल कंपनी बेचनी पड़ रही है, GST का पैसा नहीं है राज्य सरकारों को देने को, बैंक्स इतने बर्बाद हो गए की या तो बंद हो गए या बड़े बैंक में मर्ज करके उन बड़े बैंकों को भी बड़ा कर्ज़दार बनवा दिया।
अब आप लोग ये सोचते होंगे की एक ही व्यक्ति इतना नाकारा कैसे हो सकता है की देश के एक एक इंस्टिट्यूट को घाटे में पहुंचा दे, और इतना घाटे में की वो बहुत ही कम दाम पर बेचने पड़ जाए ? तो इसका जवाब है की मोदी का इतिहास खंगालिए आपको जवाब मिल जाएगा की उनके साथ ऐसा क्यों हुआ।
मोदीजी ने अपनी ज़िन्दगी के 35 साल भीख मांग मांग कर गुजारे हैं, यानी के उन्होंने अपनी ज़िन्दगी का स्वर्णिम दौर भीख मांग मांगकर निकाला है। और भीख कौन मांगता है ? भीख मांगता है वो इंसान जो मेहनत नहीं करना चाहता, या जो ज़िन्दगी में आसान रास्ते choose करना चाहता है।
तो यही मोदीजी को दिक्कत आयी देश के एक एक इंस्टिट्यूट को चलाने में, उन्हें आदत थी के बिना मेहनत के जो मिल जाए वो बढ़िया है, उनका गुजरात मॉडल भी यही था।
उन्होंने अडानी अम्बानी जैसों को एक रुपये के हिसाब से जमीनें बाँट दी थी ताकि उनके राज्य में दिखे की लोगों के पास काफी रोज़गार है, लेकिन ये सस्टेनेबल मॉडल नहीं है तरक्की का, क्यूंकि जिसने फ्री के भाव जमीन ली है, वो फिर इसे बिज़नेस की तौर पर ना देख के प्रॉपर्टी के तौर पर देखता है इसलिए उद्योग भी फेल ही रहते हैं वहांपर,
जोकि अडानी के साथ हुआ भी अपने ज्यादातर वेंचर्स में, और जिसके कारण की उनपर बैंकों का कर्ज़ा बढ़ता ही गया लगातार, जिसको के फिर मोदी सरकार ने बैंकों से कर्ज़ा माफ़ करवा करवा कर बचाया।
same अम्बानियों के साथ हुआ, उनके भी बिज़नेस घाटे में जाते गए, और मोदी उन्हें फ्री की जमीने और सरकारी संसाधन देते रहे ताकि आसानी से राज चला सकें। लेकिन इतिहास गवाह है की भिखारी कभी भी समाज को सुखी नहीं कर सकता है, और मोदी के साथ भी वही हुआ,
वो लोगों को फ्री में चीज़ें दे देकर नाकारा करता गया, और यहां के बिज़नेसमैन भी लीचड़ बन गए, और धीरे धीरे सरकारी संसाधनों की मदद पर ही निर्भर रह गए। अनिल अम्बानी तो इतना कर्ज़े में डूबा हुआ है की चुका भी पायेगा या नहीं ये भी नहीं पता।
बाकी इंस्टीटूशन्स के साथ भी मोदी का ये भिखारी वाला ऐटिटूड जुड़ा रहा, और उसने बाकी के भी सारे इंस्टीटूट्स भिखारी बना दिए। अब किसी के पास पैसा नहीं है। हम लोग कंपनी में एम्प्लोयी hire करते हैं तो देखते हैं की बंदा मेहनती है या भिखारी टाइप्स ऐटिटूड है उसका,
अगर कोई भिखारी टाइप के ऐटिटूड वाला दीखता है तो उसे hire ही नहीं करते, क्यूंकि वो कंपनी में माहौल खराब करेगा अपनी नौकरी बचाने के लिए। देश ने गलती की है जिसकी वो सजा भुगत रहा है,
इसलिए रेलवे, बैंक्स, एयरपोर्ट्स, वगैरह जैसे सरकारी ज्वेल्स आज सरकार को बेचने पड़ रहे हैं। और आगे क्या होना है की, मोदीजी ने बताया भी है की वो फ़कीर हैं और झोला उठाकर चल देंगे।
अब आप सोचिये की क्या इतिहास में कभी भी कोई साधू, या सूफी संत, या फ़कीर राजा बना है किसी राज्य का ? और नहीं बना तो क्यों नहीं बना ?सीधा सा कारण है उसका के उसमे कॉम्पिटिटिव एज नहीं रहता समाज को चलाने का। वो आसान तरीके ढूंढता है काम को करने के, जिस कारण देश लगातार गर्त में जाता रहता है।
मोदीजी में जो 35 साल भीख मांगी थी, वो भीख अब आने वाले 35 साल ये देश मांगने वाला है, क्यूंकि ना केवल बिज़नेस हाउसेस ठप्प होते जा रहे हैं, बल्कि लोगों के रोज़गार भी ख़त्म होते जा रहे हैं।
मतलब,
जो व्यक्ति 35 साल तक भीख मांग के गुजारा कर रहा हो, आप कैसे सोच सकते थे की वो अचानक से अपनी आदत और ऐटिटूड बदल लेगा ?
वो हमेशा आसान रास्ते चुनकर आपसे कह देगा की मुझे फांसी पर लटका देना, मुझे चौराहे पर बिठा देना, इत्यादि, लेकिन जिस दिन चैराहे पर आने की बात होगी वो कोई और बहाना बना देगा, क्यूंकि उसकी बात की कोई वैल्यू तो है नहीं।
इसलिए मेरा कहना है की आगे जब भी प्रधानमन्त्री चुना जाए, तो पहले उसका resume चेक करके ये देखना चाहिए के इसने कभी भीख तो नहीं मांगी हुई है, अगर मांगी हुई हो तो मुझे लगता है किसी और कैंडिडेट को वोट करना चाहिए उसकी जगह। और वो चाहे किसी भी पार्टी का हो।
मोदी को रेलवे स्टेशन बेचने पड़ गए, एयरपोर्ट बेचने पड़ गए, आयल कंपनी बेचनी पड़ रही है, GST का पैसा नहीं है राज्य सरकारों को देने को, बैंक्स इतने बर्बाद हो गए की या तो बंद हो गए या बड़े बैंक में मर्ज करके उन बड़े बैंकों को भी बड़ा कर्ज़दार बनवा दिया।
अब आप लोग ये सोचते होंगे की एक ही व्यक्ति इतना नाकारा कैसे हो सकता है की देश के एक एक इंस्टिट्यूट को घाटे में पहुंचा दे, और इतना घाटे में की वो बहुत ही कम दाम पर बेचने पड़ जाए ? तो इसका जवाब है की मोदी का इतिहास खंगालिए आपको जवाब मिल जाएगा की उनके साथ ऐसा क्यों हुआ।
मोदीजी ने अपनी ज़िन्दगी के 35 साल भीख मांग मांग कर गुजारे हैं, यानी के उन्होंने अपनी ज़िन्दगी का स्वर्णिम दौर भीख मांग मांगकर निकाला है। और भीख कौन मांगता है ? भीख मांगता है वो इंसान जो मेहनत नहीं करना चाहता, या जो ज़िन्दगी में आसान रास्ते choose करना चाहता है।
तो यही मोदीजी को दिक्कत आयी देश के एक एक इंस्टिट्यूट को चलाने में, उन्हें आदत थी के बिना मेहनत के जो मिल जाए वो बढ़िया है, उनका गुजरात मॉडल भी यही था।
उन्होंने अडानी अम्बानी जैसों को एक रुपये के हिसाब से जमीनें बाँट दी थी ताकि उनके राज्य में दिखे की लोगों के पास काफी रोज़गार है, लेकिन ये सस्टेनेबल मॉडल नहीं है तरक्की का, क्यूंकि जिसने फ्री के भाव जमीन ली है, वो फिर इसे बिज़नेस की तौर पर ना देख के प्रॉपर्टी के तौर पर देखता है इसलिए उद्योग भी फेल ही रहते हैं वहांपर,
जोकि अडानी के साथ हुआ भी अपने ज्यादातर वेंचर्स में, और जिसके कारण की उनपर बैंकों का कर्ज़ा बढ़ता ही गया लगातार, जिसको के फिर मोदी सरकार ने बैंकों से कर्ज़ा माफ़ करवा करवा कर बचाया।
same अम्बानियों के साथ हुआ, उनके भी बिज़नेस घाटे में जाते गए, और मोदी उन्हें फ्री की जमीने और सरकारी संसाधन देते रहे ताकि आसानी से राज चला सकें। लेकिन इतिहास गवाह है की भिखारी कभी भी समाज को सुखी नहीं कर सकता है, और मोदी के साथ भी वही हुआ,
वो लोगों को फ्री में चीज़ें दे देकर नाकारा करता गया, और यहां के बिज़नेसमैन भी लीचड़ बन गए, और धीरे धीरे सरकारी संसाधनों की मदद पर ही निर्भर रह गए। अनिल अम्बानी तो इतना कर्ज़े में डूबा हुआ है की चुका भी पायेगा या नहीं ये भी नहीं पता।
बाकी इंस्टीटूशन्स के साथ भी मोदी का ये भिखारी वाला ऐटिटूड जुड़ा रहा, और उसने बाकी के भी सारे इंस्टीटूट्स भिखारी बना दिए। अब किसी के पास पैसा नहीं है। हम लोग कंपनी में एम्प्लोयी hire करते हैं तो देखते हैं की बंदा मेहनती है या भिखारी टाइप्स ऐटिटूड है उसका,
अगर कोई भिखारी टाइप के ऐटिटूड वाला दीखता है तो उसे hire ही नहीं करते, क्यूंकि वो कंपनी में माहौल खराब करेगा अपनी नौकरी बचाने के लिए। देश ने गलती की है जिसकी वो सजा भुगत रहा है,
इसलिए रेलवे, बैंक्स, एयरपोर्ट्स, वगैरह जैसे सरकारी ज्वेल्स आज सरकार को बेचने पड़ रहे हैं। और आगे क्या होना है की, मोदीजी ने बताया भी है की वो फ़कीर हैं और झोला उठाकर चल देंगे।
अब आप सोचिये की क्या इतिहास में कभी भी कोई साधू, या सूफी संत, या फ़कीर राजा बना है किसी राज्य का ? और नहीं बना तो क्यों नहीं बना ?सीधा सा कारण है उसका के उसमे कॉम्पिटिटिव एज नहीं रहता समाज को चलाने का। वो आसान तरीके ढूंढता है काम को करने के, जिस कारण देश लगातार गर्त में जाता रहता है।
मोदीजी में जो 35 साल भीख मांगी थी, वो भीख अब आने वाले 35 साल ये देश मांगने वाला है, क्यूंकि ना केवल बिज़नेस हाउसेस ठप्प होते जा रहे हैं, बल्कि लोगों के रोज़गार भी ख़त्म होते जा रहे हैं।
मतलब,
जो व्यक्ति 35 साल तक भीख मांग के गुजारा कर रहा हो, आप कैसे सोच सकते थे की वो अचानक से अपनी आदत और ऐटिटूड बदल लेगा ?
वो हमेशा आसान रास्ते चुनकर आपसे कह देगा की मुझे फांसी पर लटका देना, मुझे चौराहे पर बिठा देना, इत्यादि, लेकिन जिस दिन चैराहे पर आने की बात होगी वो कोई और बहाना बना देगा, क्यूंकि उसकी बात की कोई वैल्यू तो है नहीं।
इसलिए मेरा कहना है की आगे जब भी प्रधानमन्त्री चुना जाए, तो पहले उसका resume चेक करके ये देखना चाहिए के इसने कभी भीख तो नहीं मांगी हुई है, अगर मांगी हुई हो तो मुझे लगता है किसी और कैंडिडेट को वोट करना चाहिए उसकी जगह। और वो चाहे किसी भी पार्टी का हो।