कृष्णकांत
इस देश में कुछ लोग ऐसे हैं जो हर अच्छी बात पर आहत हो जाते हैं. जैसे कि वे योगेंद्र यादव की मीठी बोली से आहत हो जाते हैं. वे किसी प्रोफेसर के भाषण से आहत हो जाते हैं. वे आनंद तेलतुंबड़े की विद्वता से आहत हो जाते हैं. वे किसी कवि की कविता से आहत हो जाते हैं. वे किसी प्रोफसर के लेक्चर से आहत हो जाते हैं. वे किसी छात्र के यूनिवर्सिटी में पढ़ने भर से आहत हो जाते हैं.
वे पत्रकार के लेख से आहत हो जाते हैं. वे बुद्धिजीवी की बुद्धि से आहत हो जाते हैं. वे किसी सामाजिक कार्यकर्ता के गरीबों के हित में काम करने से आहत हो जाते हैं. वे किसी पूर्व आईएएस अधिकारी के पुलिस सुधार की बात से आहत हो जाते हैं. वे किसी पूर्व जज के कानूनी सवाल उठा देने से आहत हो जाते हैं.
वे आम लोगों के विरोध से आहत हो जाते हैं और अपने विरोध में खड़े हर व्यक्ति को देशद्रोही जैसा कुछ मानते हैं, क्योंकि वे खुद को देश समझते हैं. वे खुद को देश समझते हैं और अपने हर विरोधी को किसी षडयंत्र में फंसा देना चाहते हैं.
ऐसे लोग कहते हैं कि वे नये देश का निर्माण करेंगे. मुझे ये बात 500 साल पुराने फूहड़ चुटकुले से ज्यादा कुछ नहीं लगती. असली सवाल तो ये है कि आप नये देश का निर्माण करेंगे क्यों? जो देश है उससे आपकी क्या दुश्मनी है?
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