संसद यानी क्या ?
सौमित्र रॉय
ये सवाल मैंने एक हिमाचली नौजवान से पूछा था। दिल्ली में एक बड़े कॉर्पोरेट घराने में मैनेजर वह नौजवान बस में मेरी बगल वाली सीट पर बैठा था।
जवाब मिला- जहां सारे नेता लोग बैठकर चर्चा करते हैं।
आप भी अपने आसपास के किसी छैल-छबीले टाइप के नौजवान से यही सवाल पूछिए। जवाब मिलता-जुलता होगा।
फिर मोदी के नए भारत में किसी नेता ने पूछिए। चेहरे पर व्यंगात्मक मुस्कान खिल उठेगी।
बीते दो दिन में मोदी सरकार ने संसद को मजाक का विषय बना दिया है।
कल राजनाथ सिंह बोले, हम चीन से आर-पार की लड़ाई के तैयार हैं। आज विदेश मंत्रालय बोला- चीन से रिश्ते नहीं बिगड़े।
कल श्रम मंत्री बोले थे- हमें प्रवासी मजदूरों की संख्या नहीं पता। फिर श्रम मंत्रालय 10 करोड़ से ज्यादा का पुराना आंकड़ा लेकर आया, जिसमें दावा किया गया कि 1 करोड़ से ज्यादा प्रवासी मजदूर घर लौटे थे।
आज स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने संसद में कह दिया कि उसे कोविड संक्रमण से जान गंवाने वाले डॉक्टरो, नर्सों और मेडिकल स्टाफ के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
प्रश्नकाल और शून्यकाल को संसद की संतान का दर्जा दिया गया है। सवाल पूछना न केवल लोकतंत्र के लिए जरूरी है, बल्कि एक सांसद का अधिकार भी है।
काफी ऊहापोह के बाद संसद ने प्रश्नकाल की बात मान ली। लेकिन शायद जवाब तैयार करने वाले बाबुओं को पूरी उम्मीद थी कि प्रश्नकाल कोरोना के विशेष अधिवेशन में स्थगित हो जाएगा।
अलबत्ता, ऐसा नहीं हुआ और प्रश्नकाल हो रहा है। लेकिन 15 दिन के नोटिस के बावजूद जवाब कैसे आ रहे हैं ?
मैने अपनी पिछली पोस्ट में डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के कोरोना की चपेट में आने का आंकड़ा लिंक के साथ दिया था।
यानी पब्लिक डोमेन में डेटा है, लेकिन संसद में नहीं बताया जा रहा है।
इसका मतलब क्या है ?
इसका मतलब है कि संसद से लेकर सड़क, चौराहे तक सिर्फ और सिर्फ एक व्यक्ति को बचाने की कोशिश हो रही है।
उस व्यक्ति का नाम है नरेंद्र दामोदरदास मोदी।
ताली-थाली नहीं बजाएंगे भक्तो ?