GDP का घटकर माइनस में चले जाने का सीधा मतलब है कि आपकी हमारी आय घट गयी है क्योंकि...
गिरीश मालवीय
जीडीपी का घट कर माइनस में चले जाने का सीधा मतलब है कि आपकी हमारी आय घट गयी है क्योकि जीडीपी से सीधे लोगों की औसत आय जुड़ी हुई है
किसी देश की सीमा में एक निर्धारित समय के भीतर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहते हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि जीडीपी कम होने की वजह से लोगों की औसत आय कम हो जाती है देश की अर्थव्यवस्था की सेहत जीडीपी से ही नापी जाती है
जीडीपी के कमजोर आंकड़ों के प्रभाव को विस्तार से बताते हुए एक्सपर्ट्स कहते हैं कि 2018-19 के प्रति व्यक्ति मासिक आय 10,534 रुपये के आधार पर, वार्षिक जीडीपी 5 पर्सेंट रहने का मतलब होगा कि प्रति व्यक्ति आय वित्त वर्ष 2020 में 526 रुपये बढ़ेगी. जीडीपी 4 फीसदी की दर से बढ़ती है तो आमदनी में वृद्धि 421 रुपये होगी. इसका मतलब है कि विकास दर में 1 फीसदी की कमी से प्रति व्यक्ति औसत मासिक आमदनी 105 रुपये कम हो जाएगी. यानी एक व्यक्ति को सालाना 1260 रुपये कम मिलेंगे
ध्यान दीजिए यहाँ हम वार्षिक आँकड़े की बात कर रहे हैं 2018 -19 में जीडीपी की दर 4.2 प्रतिशत थी अब 2020-21 की पहली तिमाही की शुरुआत - 23.9 से हुई है दूसरी तिमाही जो चल रही है वह भी कोई खास ग्रोथ नही दर्शा रहे हैं तो यह माना जा सकता है कि इस साल आँकड़े निगेटिव ग्रोथ दर्शा सकते हैं यानी आम आदमी की औसत आय में बड़ी कमी दर्ज की जाएगी
अब जीडीपी माइनस में जा रही है तो खुद अंदाजा लगाइए कि वार्षिक आय में कितना बड़ा घाटा होने जा रहा है इसका असर अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलेगा लेकिन सबसे ज्यादा असर इसका बैंकिंग व्यवस्था पर नजर आएगा मध्यवर्गीय लोग EMI नही भर पाएंगे गरीबी भयानक रूप से बढ़ेगी...... देश रसातल में चला जाएगा, इस संकट को सिर्फ सरकार ही संभाल सकती है
दरअसल ऐसी स्थिति में होता यह है कि आम आदमी कमाई कम होने की खबर सुनकर खर्च कम और बचत ज्यादा करने लगता है बिल्कुल ऐसा ही व्यवहार कंपनियां भी करने लगती हैं ओर कुछ हद तक सरकार भी यही काम करती है इसके संकेत दिखने भी लगे हैं...... ऐसी स्थिति में बेरोजगारी विस्पोटक रूप अख्तियार कर लेती है .…..क्योकि खर्च कम करने का अर्थ ही हमारे देश मे लोगो को नोकरियो से निकालना होता है
भारत मे आए इस संकट की तुलना सिर्फ 1933 के ग्रेट डिप्रेशन यानी वैश्विक महान मंदी से की जा सकती हैं लेकिन उनके पास स्थिति को संभालने के लिए फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट जैसे राष्ट्रपति थे यहाँ हमारे पास मोदी जी है जो सिर्फ दिखाने के 56 इंच है जो अपने 6 साल के एक्ट ऑफ फ्रॉड को तीन महीने के एक्ट ऑफ गॉड के नाम पर छुपाने में लगे है