क्या आपके पास चुनाव से पहले BJP जॉइन करने का कोई मैसेज आया है?
सौमित्र रॉय
क्या आपके पास चुनाव से पहले बीजेपी जॉइन करने का कोई मैसेज आया है? अगर जवाब हां है तो समझिए कि आपका आधार और वोटर आईडी दोनों बीजेपी के पास दर्ज़ है।
आमतौर पर लोग इसे राजनीतिक चुनाव प्रचार का हिस्सा- बल्क मैसेज के तौर पर लेते हैं। लेकिन यह अब आपको उस राजनीतिक दल के झूठे वाट्सअप ग्रुप से भी जोड़ता है।
फेसबुक पर 90% मित्र मंडली की वॉल पर ऐसे वाट्सअप फारवर्ड रोज़ देखता हूं। कांग्रेस, सपा, आप और TMC भी इससे अछूती नहीं है। इसीलिए, देश में आधार को वोटर आईडी से जोड़ने का खासा विरोध नहीं हो रहा है।
ख़ुद मद्रास हाईकोर्ट ने जांच में पाया कि बीजेपी लोगों की सहमति के बिना उनके फ़ोन, आधार नंबर और सामाजिक प्रोफाइल का दुरुपयोग उन्हें अपने राजनीतिक हित के लिए प्रभावित करने में कर रही है। 2019 में आंध्र प्रदेश की SIT ने एक कंपनी पर छापा मारकर 7.6 करोड़ लोगों के वोटर आईडी और आधार का डेटा बरामद किया था।
ऐसी कंपनियां वोटरों की प्रोफाइल बनाती हैं, जिन्हें सत्ताधारी दल टारगेट करता है। जो इनके झांसे में न आए, उसका नाम वोटर लिस्ट में काटा भी जाता है। आंध्र और तेलंगाना ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले घर-घर जाकर तस्दीक किये बिना 5.5 करोड़ लोगों के नाम वोटर आईडी में से उड़ा दिए थे।
इसका मतलब क्या हुआ? अगर 7.5 करोड़ में से 5.5 करोड़ वोटरों के नाम सूची में से हट जाएं तो उस जनमत को आप क्या कहेंगे?
बिहार और यूपी जैसे राज्यों में कभी मतपत्र थोकबंद रूप से हड़पे/छीनने और बोगस वोटिंग के लिए इस्तेमाल किये जाते थे। मतदाताओं को पता चलता था कि उनका वोट कोई और डाल गया है।
अब मोदी सरकार ने समूची चुनाव धांधली को वैधानिक बना दिया है। इस बारे में मेरे लिखे को सच बनाया है मित्र Kumar Sambhav Shrivastava ने। साफ़ है कि डुप्लीकेसी को खत्म करने के बहाने यह सारा खेला मोदी सरकार अब कानूनी तरीके से खेलेगी।
पुड्डुचेरी का मामला बीजेपी की चुनावी धांधली का खुला प्रमाण है। इसी साल 1 अप्रैल को हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा कि बीजेपी ने लोगों की निजता के अधिकार का हनन कर राजनीतिक लाभ लिया है। कहना न होगा कि जज का तबादला हो गया।
जैसा कि मेरे मित्र Girish Malviya लगातार कहते रहे हैं कि भारत में डार्क डेटा मार्केट बीते 20 साल में खूब चमका है और आपका तकरीबन हर डेटा (जातिगत भी) इस बाजार में है। कोई भी नोटों के बंडल फेंककर डेटा खरीद सकता है- लेकिन गैरकानूनी तरीके से- जिसे अब मोदी सरकार कानूनी बना चुकी है।
आप याद करें 2014 कि वह तारीख, जब नरेंद्र मोदी रिकॉर्ड वोट से 2014 का चुनाव वाराणसी से जीते थे। तब हल्ला हुआ था कि शहर के सारे वोटरों को मिलाकर भी ज़्यादा वोट पड़े। मामला दबा दिया गया। भारत में लोकतंत्र का दम भरने वाले और कानून पर पोथा लिखने वालों के दोगलेपन पर मैं हमेशा हंसता हूं। इस भीड़तंत्र में लोकतंत्र तो कबका खो चुका है।