गांधी जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी अहिंसा और प्रेम का पाठ आज भी जीवित है
मोहम्मद खुर्शीद आलम
दो धर्म संसद हुई। दोनों में नफरत की पाठशाला लगी। पहला हरिद्वार में जहां पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को गोली मारने से लेकर मुसलमानों को कत्लेआम करने के लिए ओपन कॉल दी गई। और गांधी जी के बारे में भी अपशब्द कहा गया।
दूसरा रायपुर में हुआ, जहां गांधी जी का फिर से अपमान किया गया। आरोपी कालीचरण पकड़ा भी गया। जो कि जरूरी था। लेकिन मुसलमानों के कत्लेआम करने वालों पर ढंग से एक FIR भी नहीं हुई। और आपको लगता है आप जीत गए? आप गांधी के आदर्शों उनके विचारों को बचा लिए?
महात्मा गांधी के आलोचक तो उनके जीते जी भी रहे। उन्हीं की औलाद अब भी गांधी को आए दिन अपशब्द कह रहे हैं।
लेकिन महात्मा गांधी के विचार का क्या होगा ? कभी सोचा मुसलमानों के जनसंहार की बात करने वाले आरोपी अभी तक आजाद घूम रहे हैं। प्रशासन के साथ ठहाके लगा रहे हैं। ऐसे में गांधी जी एकता में अखंडता का क्या होगा?
गांधी जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी अहिंसा और प्रेम का पाठ आज भी जीवित है। फिर उनको मानने वाली सभी राजनीतिक पार्टियां ख़ामोश कैसे हैं? वो भी जब धर्म संसद लगाकर हिंसा और नफरत की बात की जा रही हैं।
शायद आपको याद नहीं जब देश आजाद हुआ। तब हिंदू-मुस्लिम की आग की लपटे तेज थीं। ऐसे में गांधी ने आज़ादी का जश्न न मनाकर एक जगह से दूसरी जगह एकता और आपसी भाईचारे का पाठ पढ़ाने के लिए दिन रात एक कर दिए थे। लेकिन आज आपकी खामोशी महात्मा गांधी के आदर्शों और विचारों को धूमिल कर रही हैं।
गांधी के सपनों का भारत बचा लीजिए, जिसमें सभी धर्म और जाति के लोग मोहब्बत के साथ मिलजुलकर रहें। और वो तभी संभव है जब उन सभी नफरतियों को सजा मिलेगी।