हिन्दुत्व की सियासत ने मुल्क़ को ऐसे मुक़ाम पर लाकर खड़ा कर दिया, जहाँ इसका एकत्व खंड खंड नज़र आने लगा है?
सलमान अरशद
आज़ाद भारत में शूद्रों के एक वर्ग को, जिन्हें हम दलित कहते हैं, आरक्षण दिया गया ताकि वो सवर्ण समुदाय से किसी हद तक बराबरी कर पायें। ये अलग बात है कि सवर्ण समुदाय की शासन प्रशासन में बेहतर भागीदारी थी तो आरक्षण पर दो तरह से हमला लगातार होता रहा, एक तो इसकी अवधारण को ही बदलने की कोशिश हुई, इसे बार बार गरीबी व अमीरी की बहस में उलझाया गया।
जबकि आरक्षण गरीबी उन्मूलन का नहीं बल्कि हिस्सेदारी का मामला है। अमीरी गरीबी की इसी बहस से गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण का रास्ता निकाला गया जिसमें खूब सारे झोल हैं। दूसरे आरक्षण को ठीक से लागू न करने देने की कोशिश हुई। हाल के दिनों में आरक्षित वर्ग को अनारक्षित वर्ग में अप्लाई करने से रोक कर सवर्ण तबके को अघोषित रूप से उनकी कुल संख्या से कई गुना ज़्यादा आरक्षण दे दिया गया।
दूसरी तरफ शूद्र वर्ग को मुसलमानों को टाइट करने की ड्यूटी भी दे दी गई जिसे शूद्र समूह बड़े उल्लास से निभा रहा है। इधर ये अपनी ड्यूटी में मगन है उधर इसे जो थोड़ा बहुत मिला था, उसे छीना जा रहा है।
जिस दिन शूद्र समूह को अपने साथ हो रहे इस अन्याय का एहसास हुआ, जातिय आधार पर सामाजिक विखंडन, संघर्ष और मारकाट अवश्यम्भावी है।
पिछले कुछ सालों में निजीकरण को भी खूब बढ़ावा दिया गया। निजी क्षेत्र में घुसने लायक शूद्र समूह के अधिकांश लोग हैं ही नहीं।
मुसलमान का चुग्गा थमा कर,उन्हें उनकी हैसियत बताई जा रही है जिन्होंने जातीय आधार पर अपमानित होने से इनकार कर दिया था।
मुसलमान और ईसाई तो चुग्गा बनाने की कोशिश में ही विलेन बना दिये गए। लगता है कि अब सिक्ख भी इसी कटेगरी में आ जाएंगे।
इस तरह पूरे देश को एक दूसरे के सामने का खड़ा कर दिया गया है, एक छोटी सी चिनगारी किसी बड़ी मुसीबत का कारण बन सकती है।
सत्ता में कोई भी पार्टी रहे, जनता को जनता से लड़ाने के अलावा ये पार्टियाँ और कुछ नहीं कर सकतीं।
लड़ते मरते रहिए, फिलहाल यही देश भक्ति कहलाती है आजकल !