गांधी बचे रहे इसके लिए आप क्या कर रहे हैं?
रोहित देवेंद्र
नोटों पर तस्वीरों का यह सजेशन पिछले दिनों सोसायटी के वाट्सएप ग्रुप पर मिला... देशकाल वही जब एक धर्म संसद में 20 लाख मुसलमानों का कत्लेआम का उद्घोष हो रहा था तो दूजी तरफ एक दूसरी धर्म संसद में गांधी को गाली दी जा रही थी।
सुनते हैं कि कालीचरण की आज कहीं से गिरफ्तारी हो गई। कल ये भी सुनेंगे कि उसे कहीं से लोकसभा का टिकट मिल गया, परसों ये भी कि वो ढाई लाख वोटों से जीत भी गया। ये एक क्रम है। सिस्टमैटिक तरीके से आपका मन बनाने का प्रयास। एक साथ कई सारे पत्थर ऊपर से छोड़े गए हैं, जो लुढ़कते लुढ़कते आप पर धीमे-धीमे गिरते रहेंगे। पत्थरों की कोटिंग रबड़ की है ताकि वे आप पर गिरे तो, आप उनके नीचे दबे भी लेकिन कोई आवाज न करें। कालीचरण एक तरह का पत्थर है नोटों का ये सजेशन दूसरे तरह का।
जिन्हें पहला वाला पथर चुभे उनके लिए दूसरा वाला। उन्हें दिक्कत जितनी गांधी से है उतनी ही पटेल, सुभाष और भगत से भी है। पर उनका तरीका बहुत बारीक है। उनका ये बात पता है कि वो नेहरू और गांधी के बराबर श्याम प्रसाद, दीन दयाल या सावरकर को अभी फिलहाल नहीं खड़ा किया जा सकता है। गांधी से उनकी तुलना अटपटी हो जाएगी। देश के सेलेबस में अभी भी फ्रीडम फाइटिंग मूमेंट पढ़ाया जा रहा है। आज़ादी की घटना अभी भी लगभग जीवित है। देश में भी वो पीढ़ी है जिसने 1950, 60, 70 के दशक को देखा है। तो बात जरा पिट जाएगी।
ये समान्तर तरीके से हो रहा दोहरा काम है। एक तरफ गांधी के कद को धीमे धीमे कुतरना और उसी के साथ साथ गांधी के बराबर कुछ और लोगों को स्टेबलिश करना। वो नाम और लोग जिनके विचारों से इनका दूर दूर तक वास्ता नहीं पर जिनका तरीका गांधी के तरीके से थोड़ा अलग रहा हो। उन नामों को गांधी के विरोध के रूप में रेखांकित करते रहना। बीच बीच में ये टेस्ट करते रहना कि गांधी का कद कितना कम हो गया। कालीचरण जैसों के बयान उसी प्रयोग की कड़ी होते हैं। ये कालीचरण को भी मालूम है और आपको भी कि गांधी की निंदा करने और सुनने वाला एक वर्ग समाज में तैयार हो चुका है। जिसका आकार हर दिन के साथ बड़ा हो रहा है।
सारी कोशिश ये कि 10, 20, 50 बरस बाद गांधी के विरोध की आवाजें लोगों के बीच से ही आनी शुरू हो जाये। उन्हें अपनी तरफ से कुछ न कहना पड़ा। गांधी का विरोध करने की जो एक संकोच की चादर है उसे लोग ही हटा दें। समाधि पर फूल चढ़ाने की औपचारिकता और बेबसी खुद ब खुद खत्म हो जाये। नोट पर उनकी फोटों और चश्में की कमानियाँ तो किसी भी दिन हट जाएंगी।
सवाल ये है कि उनकी इतनी सिस्टमैटिक तैयारी है। गांधी बचे रहे इसके लिए आप क्या कर रहे हैं? आप सिर्फ इस बात से ही खुश हैं कि एक सरकार कालीचरण को गिरफ्तार कर ले रही है? क्या गिनी चुनी सरकारों के बचाने से गांधी बच पाएंगे???