यूपी की इन 55 सीटों पर इस बार BJP को फंसा देगा सपा-RLD गठबंधन?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के दूसरे चरण में 14 फरवरी को राज्य की 55 सीटों पर मतदान होना है. इस क्षेत्र में मुस्लिम और दलितों की आबादी (Muslim-Dalit Voter in UP) काफी अहमियत रखती है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के बीच हुए गठबंधन तथा पिछले विधानसभा चुनावों के प्रदर्शन को देखें तो पहले चरण के मुकाबले यह दूसरा चरण बीजेपी (BJP) के लिए खासा मुश्किल साबित हो सकता है.
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो मुरादाबाद, सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा जैसे पश्चिमी यूपी के इन जिलों के अलावा मध्य यूपी के बदायूं और शाहजहांपुर जिले में पड़ने वाली 55 विधानसभा सीटों में से भाजपा को रिकॉर्ड 38 सीटें मिली थी. वहीं समाजवादी पार्टी को 15 सीटों से संतोष करना पड़ा, जबकि तब उसकी गठबंधन सहयोगी रही कांग्रेस को महज दो सीटें आई, वहीं बहुजन समाज पार्टी का तो खाता भी नहीं खुल सका है. वर्ष 2017 के इन नतीजों के पीछे मोदी लहर के जादू और इलाके में फैले सांप्रदायिक तनाव को वजह माना गया.
पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से कुल 11 मुस्लिम उम्मीदवार जीते, जो कि सभी सपा से थे. वहीं अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा 27 सीटों पर, भाजपा 13 पर और बसपा 11 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में जब सपा ने राज्य में बहुमत हासिल किया थआ, तो उसने इस क्षेत्र में 27 और बीजेपी ने 8 सीटें जीती थी.
वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में जब सपा, बसपा और आरएलडी ने मिलकर चुनाव लड़ा था, तो बसपा ने 11 में से चार सीटों- अमरोहा, बिजनौर, नगीना और सहारनपुर पर जीत हासिल की थी, जबकि सपा ने रामपुर, मुरादाबाद और संभल में जीत हासिल की. इन सात सीटों में कम से करीब 35 विधानसभा क्षेत्र पड़ते हैं. यहां दलित और मुस्लिम आबादी एक अहम फैक्टर है, जबकि जाट और ओबीसी वोटर्स की भी ठीक-ठाक संख्या है. इसके अलावा यादव बाहुल्य बदायूं को सपा का गढ़ माना जाता है.
हालांकि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से अगर तुलना करें तो 2022 के चुनावों से पहले यहां माहौल काफी बदला हुआ दिख रहा है. पिछले चुनावों में जहां बीजेपी को मोदी लहर का फायदा मिला था तो वहीं इस बार योगी आदित्यनाथ सरकार के कामों का मूल्यांकन होगा. इसके अलावा पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन का असर भी देखा जा सकता है. इसके अलावा माना जा रहा है कि लखीमपुर खीरी में किसानों के साथ हुई हिंसा भी भाजपा के लिए सिरदर्द बन सकती है.