कोविड की तीसरी लहर के बीच 690 विधानसभा सीटों पर चुनाव होंगे
सौमित्र रॉय
उत्तराखंड को छोड़ दें तो बाकी 4 राज्यों में टीकाकरण का हाल बुरा है। फरवरी में जब कोविड मरीजों की सुनामी आई होगी, 5 राज्य मतदान की प्रक्रिया से गुजरेंगे।
भारत में आज 1.42 लाख कोविड मामले सामने आए हैं। अधिकांश डेल्टा और डेल्टा प्लस के हैं। चुनाव इस वायरस को नया जीवन देगा। फिर कोई नहीं जानता कि कौन बचेगा, कौन नहीं।
चुनाव नतीजों से इतर देखें तो कल मोदी सरकार ने जीडीपी के 9.2% की रफ़्तार से बढ़ने का दावा किया। हालांकि, सरकार के पूर्वानुमान के इन्हीं आंकड़ों में बताया गया है कि 2019-20 में जहां देश का एक नागरिक औसतन 170 रुपये रोज़ खर्च कर रहा था, वह घटकर अब 162 पर आ गया है।
सरकार यह भी कह रही है कि टैक्स से उसे 21.78 लाख करोड़ रुपये मिल रहे हैं, जबकि उसका प्रशासनिक खर्च ही 31.93 लाख करोड़ का है, जो कि जीडीपी का 15.2% है। इधर मोदी बेचने में जुटे हैं, उधर बीजेपी की ज़मीन सिकुड़ती जा रही है। नतीजा- आंकड़ों में ही जीडीपी बढ़ रही है।
फ़िर भी बीजेपी मानती है कि देश के 95% मूर्ख वोटरों को इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता। उन्हें तमाशा चाहिए और बीजेपी के पास इसका खूब मसाला है। योगी के लिए अयोध्या में चुनाव दफ़्तर खोला जा रहा है। मथुरा भी हॉट-स्पॉट होगा। धर्म संसद में बेरोकटोक हिंसक, भड़काऊ और गैरकानूनी भाषण होंगे।
पेडिग्री मीडिया और सोशल मीडिया को बीजेपी IT सेल से भरपूर मसाला मिलेगा। गाली-गलौच और अश्लीलता की पार होती हदों पर इस बार भी चुनाव आयोग धृतराष्ट्र की तरह अंधा बना रह सकता है। ऊपर से तो यह रोजी-रोटी या लंगोटी की लड़ाई है, लेकिन भीतर से धर्म युद्ध भी है।
मुझे लगता है कि बीते 2 साल में इस देश की अवाम ने जो देखा, झेला और समझा है- उसे याद रखकर और धर्म को किनारे रखते हुए फैसला करे तो रोजी-रोटी और लंगोटी दोनों बाकी रहेगी। वरना, 2024 तक जिंदा बचे न बचे, लंगोटी ज़रूर उतर जानी है।