अखिलेश यादव की नजर में मुसलमानों को औकात रैलियों में दरी, कुर्सी बिछाने भर की है, ये रहा सुबूत
अमन पठान
जब इंसाफ की आवाज बुलंद की जाती है तो उसमें भेदभाव नहीं किया जाता है लेकिन समाजवादी पार्टी मुसलमानों से एक लंबे समय से भेदभाव कर रही है जिसके अनगिनत प्रमाण मिल जाएंगे लेकिन चुनावी मौसम में भी समाजवादी पार्टी के भेदभाव का सिलसिला बदस्तूर जारी है। आज समाजवादी पार्टी ने अपने ऑफिसियल फेसबुक अकाउंट पर विवेक तिवारी, पुष्पेंद्र यादव, जितेंद्र यादव और मनीष गुप्ता को लेकर पोस्ट की हैं। समाजवादी पार्टी इन पोस्ट के द्वारा जनता को योगी सरकार के अत्याचार की याद दिला रही है लेकिन मुसलमानों पर हुए अत्याचार का क्या? आखिर समाजवादी पार्टी मुसलमानों को हाशिये पर क्यों रख रही है?
विवेक तिवारी, जितेंद्र यादव और पुष्पेंद्र यादव के फर्जी एनकाउंटर की कसक समाजवादी पार्टी के सियासी ज़ख्मों को ताजा कर देती है लेकिन नौशाद और मुस्तकीम के फर्जी एनकाउंटर पर समाजवादी पार्टी को सांप सूंघ जाता है। ठीक उसी तरह जब अखिलेश यादव को BHP को हिंदी में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय लिखना होता है तो हिंदू लिखना याद रहता है और जब AMU को हिंदी में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय लिखना होता है तो वह मुस्लिम लिखना भूल जाते हैं। मनीष गुप्ता की पुलिसिया हत्या पर सवाल खड़े करने वाले अखिलेश यादव पीड़ित परिवार से मिलने कानपुर पहुंच जाते हैं लेकिन कासगंज में पुलिस हिरासत में मारे गए अल्ताफ के परिवार से मिलने के लिए अखिलेश यादव को फुर्सत नहीं मिलती है।
क्या समाजवादी पार्टी के मुखिया यह बताने का कष्ट करेंगे कि मुसलमानों को हाशिये पर क्यों रखा जा रहा है? ये भेदभाव क्यों और किसलिए किया जा रहा है? क्या आपकी नजर में मुसलमानों की औकात सिर्फ दरी और कुर्सी बिछाने भर की है। मुसलमान तो आपको अपना मसीहा मान चुके हैं तो मुसलमानों पर हुए अत्याचार की आवाज क्यों उठाएगा, मुसलमानों के हक़ की आवाज कौन बुलंद करेगा?
अगर कोई मुसलमानों के हक़ की आवाज बुलंद करेगा तो आप उसे भाजपा का एजेंट बता दोगे और जो मुस्लिम महिलाओं को कब्र से निकालकर बलात्कार करने की मुनादी करेगा आप उसे अपनी पार्टी में शामिल करके उसे सम्मानित करोगे? काश! मुसलमानों को इसका इल्म होता कि अखिलेश यादव भी खाकी नेकर पहनते हैं तो वो सपा का झंडा उठाकर अखिलेश यादव जिंदाबाद के नारे न लगा रहे होते?