BJP के IT सेल की तरह 1933-39 के दौरान हिटलर ने एक प्रचार मंत्रालय खोल दिया था
सौमित्र रॉय
डिजिटल मीडिया में अक्सर नए रंगरूटों से कहा जाता है कि ट्विटर ट्रेंड को फॉलो करो। 2014 के बाद से यह जुमला रटाया जा रहा है। इसके पीछे कोई तकनीकी कारण नहीं, बल्कि बीजेपी IT सेल का दुष्प्रचार है, जो जानबूझकर मीडिया के ज़रिए फ़र्ज़ी मुद्दे पकड़वाता है और अवाम को भटकाता है।
वायर ने कुछ विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस खेल का भंडाफोड़ किया है। पता चला कि बीजेपी IT सेल टेक फॉग नाम के एक एप का इस्तेमाल ट्विटर ट्रेंड के लिए करती है।
वैसे, इसका खुलासा IT सेल की एक पूर्व कर्मचारी ने किया था। वायर ने इसे पुख़्ता किया। एक मित्र का आज इस तकनीक को समझाने का आग्रह था- सो इसे यूं समझें।
1933-39 के दौरान हिटलर ने बाकायदा एक प्रचार मंत्रालय खोल दिया था और जोसेफ गोएबल उसके मुखिया थे। तब इंटरनेट नहीं था तो झूठी किताबें थीं। बीजेपी ने बाबरी विवाद के समय से ही अपना प्रचार तंत्र खड़ा किया और अमित शाह ने इसे लोकतंत्र की स्टीयरिंग की तरह घुमाना शुरू किया।
टेक फॉग उसी का हिस्सा है। ट्विटर, फेसबुक पर कौन क्या कह रहा है, उससे कैसे निपटना है और कैसे हवा का रुख मोड़ना है (मोदी के पक्ष में) सब इस एप में स्वचालित है।
यानी अमित शाह ने दुष्प्रचार तंत्र को तकनीकी जामा पहना दिया। बीजेपी IT सेल इसे संचालित करता है और 2 रुपये वाले ट्रोल असल में कुल ट्वीट के एक चौथाई होते हैं।
इसी टेक फॉग से लेखक को गाली-गलौच, बलात्कार की धमकी, झूठे तर्क/तथ्य सब दिए जा सकते हैं। तकरीबन इंस्टेंट मैसेंजर की तरह। एक बार टारगेट (गोल) में मनचाहा आंकड़ा डाल दीजिए और खेल शुरू।
यानी आप जिस ट्विटर ट्रेंड को असली मानते हैं, वह असल में फ़र्ज़ी है। इंसान के दो हाथ इसका मुकाबला कर ही नहीं सकता, क्योंकि एक ट्रोल 200-2000 ट्वीट एक मिनट में कर सकता है।
लेकिन सबसे ख़तरनाक बात यह है कि इस आटोमेटिक तंत्र को वाट्सएप से भी जोड़ा गया है। वाट्सअप में 5 से ज़्यादा फारवर्ड नहीं हो सकते, पर टेक फॉग तो QR कोड को भी चकमा देता है।
बीजेपी इस फ़र्ज़ी सूचना तंत्र को इसलिए चला पा रही है, क्योंकि इससे डेटा का बाजार धड़ल्ले से बढ़ रहा है और फेसबुक/ट्विटर जैसे डिजिटल प्लेटफार्म खूब कमा रहे हैं।
यानी, फ़र्ज़ी सूचनाएं असल खबर की शक़्ल में मोबाइल धारी मूर्ख, पाखंडी और धर्मान्ध लोगों तक पहुंचती हैं तो वे भी इन्हीं के सहारे गाली-गलौच पर उतारू होते हैं। अफवाहों का बाजार गर्म होता है।
हिमाचल में संपादक रहते हुए मैंने ट्विटर और वाट्सअप को खबरों के डिजिटल प्रचार तंत्र से हटाने की भरसक कोशिश की, पर नाकाम रहा, क्योंकि लोगों को यही पसंद आता है।
खैर, अब पोल खुली है तो ध्यान रखिये। वैसे, ऐसे ओपन सोर्स एप्स कभी बंद नहीं होंगे। बेहतर है आप खुद सजग हों, पढ़ें-लिखें और वाट्सअप से दूर अपना डिजिटल स्पेस खड़ा करें। जादूगर की जान इसी तोते में है।