BJP और RSS के घृणित हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा के पीछे की गंदगी को ऐसे समझें
सौमित्र रॉय
उत्तराखंड की एक महिला बुल्ली बाई ऐप के 3 खाते चला रही थीं। उत्तराखंड वही राज्य है, जहां यति नरसिंहानंद ने ज़हर उगला है। इसी ऐप में बेंगलुरु का 21 साल का नौजवान विशाल कुमार सिखों को बदनाम करने के लिए खालसा सुप्रीमेसिस्ट के नाम से एक खाता बनाता है।
31 दिसंबर को वह बाकी के दोनों खातों का नाम बदलकर सिखों (खालसा) के नाम कर देता है। और जनवरी की पहली तारीख को देश की 100 मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें मॉर्फ कर नीलाम की जाती हैं। मुम्बई पुलिस ने महिला और विशाल को दबोचा है। उम्मीद है दोनों के पीछे खड़े सफेदपोश चेहरे भी बेनकाब होंगे।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ठीक कहते हैं। हिंदुओं का डीएनए 40 हज़ार साल से नहीं बदला। शायद बदलेगा भी नहीं। नदियों-तालाबों में हगते और उसी में नहाते, पूजते इस समाज के दिमाग में यौन कुंठा और इस्लामोफोबिया के गंदे कीड़े गहरे जा घुसे हैं।
शौचालयों का चलन हुआ तो ट्रेन के संडास से लेकर पार्कों में पेड़ों तक में इसकी निशानियां देखी जा सकती हैं। फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि अब ये मुस्लिम महिलाओं के लिए हो रहा है। इन सबके बावज़ूद भारत में सिर्फ मोटी तनख्वाह लेने आई महिला आयोग की सदस्य मुंह बंद किये बैठी हैं। उन्हें नौकरी छोड़ देनी चाहिए।
साथ में नारीवाद का झंडा उठाये घूम रहीं महिलाएं भी, क्योंकि ये यौन हमला मुस्लिम महिलाओं पर हो रहा है। भारत ही दुनिया में इकलौता ऐसा देश है, जहां यौन अपराधों पर बोलने से पहले उम्र, जात, दौलत और मज़हब देखा जाता रहा है।
नारीवाद स्त्री को एक सामान्य स्त्री के रूप में पुरुषों के बराबर देखने की तमीज़ पैदा करने का नाम है। लेकिन सोच अगर सेलेक्टिव हो तो यह वैसा ही है, जैसे किसी प्रदूषित नदी के मल-मूत्र में जाकर डुबकी लगाना।
मोदीजी भी यह काम कर चुके हैं। वे भी सेलेक्टिव तरीके से चुप रहते हैं। इसके ख़िलाफ़ बोलिये, वरना ये गंदे कीड़े एक दिन अपने हिन्दू मां-बहनों की भी नीलामी करेंगे।