सौमित्र रॉय हां भाई, माना कि बाबा के गोरखपुर सदर से चुनाव लड़ने की बात किसी ने भी नहीं सोची या कही। सभी अयोध्या और मथुरा पर तुक्के लगाते रह...
सौमित्र रॉय
हां भाई, माना कि बाबा के गोरखपुर सदर से चुनाव लड़ने की बात किसी ने भी नहीं सोची या कही। सभी अयोध्या और मथुरा पर तुक्के लगाते रहे। लेकिन यह भी तो सोचें कि टिकटों का बंटवारा लखनऊ से भी कहां हो रहा है? टिकट बाबा की मर्ज़ी से भी कहां बांटे जा रहे हैं?
गोरखपुर से योगी को जितवाने में आरएसएस की मदद मिलेगी- यह तर्क भी ठीक है। आरएसएस ने वहां कट्टर हिंदुत्व का काफ़ी प्रचार किया है। लेकिन क्या अयोध्या और मथुरा में बीजेपी उम्मीदवारों के पक्ष में आरएसएस कोई मदद नहीं करेगी? क्या बीजेपी ने योगी को हिन्दू हृदय सम्राट मानना बंद कर दिया है?
जिस राम राज्य को बीजेपी ने यूपी की अवाम पर जबरदस्ती थोपा था, क्या उस मंजिल तक पहुंचाने वाले की नियति अपने "घर वापसी" है? योगी को उनकी परंपरागत गोरखपुर सीट पकड़ाकर मोदी और अमित शाह ने यह साफ़ संदेश दिया है कि रुकिए।
हिन्दू हृदय सम्राट एक ही है और यह जगह फिलहाल खाली नहीं है। भरी हुई है। योगी के अयोध्या से लड़ने पर उनकी ही पार्टी के कुछ बड़े नेताओं की नाखुशी भी एक वजह है।
गोरखपुर सदर योगी की सबसे सुरक्षित सीट है। उन्हें वहां ज़्यादा मेहनत की ज़रूरत नहीं होगी। यानी बीजेपी आलाकमान ने बाबा को सबसे मुश्किल चुनौती यानी पश्चिमी यूपी में जीत की ज़िम्मेदारी सौप दी है।
योगी के डिप्टी केशव प्रसाद मौर्य भी मथुरा से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन शाह और मोदी ने श्रीकांत शर्मा को लाकर खड़ा कर दिया और मौर्य को सिराथू सीट थमा दी। मौर्य और शर्मा के बीच 36 का आंकड़ा है।
आज बीजेपी की 107 सीटों में 63 उम्मीदवारों को रिपीट करना और परिवारवाद के कोढ़ को बिना दवा के अंगीकार कर लेना यह बताता है कि पार्टी डरी हुई है। मुकाबले से पहले ही डरी हुई सेना की जीत की उम्मीद बहुत कम होती है। मैंने माना था कि बीजेपी में लड़ने का माद्दा बचा है। पता नहीं था कि पार्टी तो पहले ही सरेंडर कर चुकी है।
मुआफ़ी के साथ। 🙏🙏