आज महात्मा गांधी को गाली देना आसान है, क्योंकि उन्हें समझ पाना बेहद कठिन है?
हितेश एस वर्मा
कठिन इसलिए क्योंकि आप उनके प्रति बनाई गई भ्रांतियों से घिरे हुए हैं और दूसरा ये की उन्हें समझने के लिए उन्हें पढ़ना जरूरी है.
खैर, चलिए आप महात्मा गांधी को नहीं भी मानते तो मेरे सनातनी हिंदू भाई बहन, गीता भागवत को तो मानते हो ना ? तो कम से कम पढ़ने और सीखने की शुरुआत यही से कर लीजिए.
आपका धर्म कर्म है, सनातनी वेद पुराण और शास्त्र का अभ्यास करना, और यदि नहीं करते तो कम से कम हमारे आराध्य प्रभु श्री राम का नाम मलीत मत कीजिए. मैंने बहुत कुछ सीखा है गीता से और जो उसमें प्रमुख है वह निम्नलिखित है :
~जो हुआ, अच्छे के लिए हुआ.
जो हो रहा है, अच्छे के लिए हो रहा है.
जो होगा, अच्छा ही होगा.
~तुमने ऐसा क्या खोया जिसके लिए तुम रोते हो?
आप क्या लाए थे, जो खो गया है ?
तुमने क्या बनाया, जो नष्ट हो गया है ?
~तुमने जो लिया है, वह यहीं से लिया है.
आपने जो दिया, वह यहीं दिया है.
~आज तुम्हारा जो है,
कल किसी और का था.
और कल किसी और का होगा.
~परिवर्तन ही ब्रह्मांड का नियम है.
गीता भागवत पढ़ने वाला "सत्य" को आत्मसात करना सीख ही जाता है, और जो सत्य के मार्ग पर प्रशस्थ हो वह व्यक्ति "सत्याग्रह" की शक्ति को नकार दे यह असंभव है. वह महात्मा गांधी को गलियां दे, यह असंभव है.
सत्य का मार्ग बेहद मुश्किल भरा है और झूठ का बेहद आसान. आसान रास्ते स्वीकार्य करना आम बात है, जो की अब फैशन हो चला है. शायद इसीलिए आज कठिन मार्ग बताने वाले महान लोग गालियां खा रहें हैं.
व्यभिचार, अभद्रता और हिंसा की प्रवृत्ति आज अपना लेना आसान है और कितनी ही तीव्रता से अपने पैर पसार ले, इसकी अति आपका अंत ले ही लेगी. जब अति का अंत होता है तो मनुष्य में अपने आप सृजन लेता है, सदाचार, भद्रता और अहिंसा की कपोलों का. यही प्रकृति का नियम है.
वैसे जो लोग सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में हैं उन्हें बता दूं, किसी को भी गाली देना ना हमारे देश के संस्कार हैं ना हमारे सनातन के. ऐसा करने पर, या ऐसा करने वालों का समर्थन करने पर ना संविधान आपको स्वीकारेगा ना जनता.