धर्म की राजनीति, राजनीति का सत्यानाश करेगी, नफ़रत की बुनियाद पर गौरव का पताका नहीं लहराता है: रवीश कुमार
मुझे कोई उम्मीद नहीं कि यूपी या बिहार के नौजवान इसपर विचार करेंगे। वे तूफ़ान में हैं। नफ़रत के आधार पर उन्होंने धर्म के गौरव का पताका उठा लिया है। गौरव की इस राजनीति में झूठ और अनैतिकताओं की आग झोंक दी गई है। चरित्र निर्माण की जगह चरित्र हनन की भाषा बोली जा रही है। राजनीति में धर्म का नाम लेकर हर तरह की संवैधानिक मर्यादा को कुचला जा रहा है। मेरी बात याद रखिएगा। धर्म राजनीति का सत्यानाश कर देगा।
राजनीति अवसरों के विस्तार का संघर्ष है। परलोक सुधार का कर्तव्य नहीं है। गौरव की राजनीति की बुनियाद में झांक कर देखिए। बदला लेने, झूठ बोलने और नफ़रत के सामान तैयार करने के नाम पर बनाई गई है। यह एक दिन बहुसंख्यक समाज को अपराधी बना देगी। उसके बच्चे धर्म के नाम पर अपराध करने लगेंगे और नेता उनका इस्तमाल कर राज करेंगे। ये बच्चे केवल क़ानून के अपराधी नहीं बनेंगे बल्कि सामाजिक मर्यादाओं और धार्मिक नैतिकताओं के भी अपराधी बनेंगे। ऐसे लोगों के समूह की प्रमुखता के कारण राजनीतिक समाज तेज़ी से अराजकता की तरफ़ बढ़ रहा है। धर्म की आड़ में नेताओं की वाणी देख लीजिए।
ख़ैर यूपी का चुनाव तय दिशा में आगे बढ़ने लगा है।पुल-पुलिया से विकास के दावे के हवा होने लगे हैं। नेता धर्म को हांक रहे हैं। उनका माफ़िया माफ़िया और हमारा माफ़िया माफ़िया नहीं? इस राज्य में बालू से लेकर शिक्षा माफ़िया भरे पड़े हैं। हर राज्य में ही हैं। यूपी के नौजवानों को पता है कि किन किन नेताओं के स्कूल और कालेज चल रहे हैं और वहाँ पढ़ाई के नाम पर क्या होता है। ये नेता इन दिनों किस दल में हैं, उन दिनों किस दल में थे।
मगर उनका नाम कभी नहीं लिया जाएगा। माफ़िया में म से मुसलमान बनाया जा रहा है। कभी आतंकवादी तो कभी माफ़िया। हर बार यही सिखाया जा रहा है कि आपको धर्म के नाम पर वोट देना है और वोट देने के लिए धर्म के नाम पर नफ़रत करते रहना है। चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम, उसके भीतर जितने भी नेता पैदा होंगे और उनके पैदा होने का आधार धर्म होगा, राजनीति का सत्यानाश ही होगा। इसे लिखकर अपने पर्स में रख लीजिए।
यूपी के नौजवान अपना भविष्य किसमें देखते हैं, वही बेहतर जानते हैं। कोई भी नेता किसी समाज, किसी जाति, किसी धर्म को लेकर खड़ा हो जा रहा है, उसके पीछे हज़ारों की भीड़ आ जा रही है। सब अपनी जाति और अपने समाज के हिसाब से इंसाफ़ चाहते हैं। सिस्टम ध्वस्त हो गया है। अगर क़ानून संविधान से चलेगा और दिन रात, हर किसी के राज में चलेगा तो थाने जाने के लिए जाति और धर्म के नेता की ज़रूरत ख़त्म हो जाएगी। लेकिन न्याय व्यवस्था और सरकारी सिस्टम को संवैधानिक मान्यताओं से अलग कर समाज को अराजक बनाया जा रहा है। इस स्थिति में जिसके पास भीड़ होगी उसका भाषण भड़काऊ होगा और आपके भविष्य का सत्यानाश होगा। इस बात को भी लिख कर पर्स में रख लीजिए। एकदम सही होने वाला है।
महापुरुषों के नाम पर जाति गौरव का विज्ञापन छापना और मीम बनाना बंद कीजिए। उनका सम्मान दिल में कीजिए। जयंती जयंती पर याद करने की राजनीति अति के छोर पर पहुंच गई है। एक दिन एक महापुरुष का विज्ञापन छपता है और अगले दिन किसी और का। किसी को कुछ याद नहीं रहता है। इससे न उन्हें याद किया जा रहा है और न उन्हें याद करने वालों को याद किया जा रहा है।
हर दूसरा आदमी अपना काम छोड़ कर किसी की जयंती मना रहा है। किसी महापुरुष का फ़ोटो लगाकर समाज में अपनी जगह बना रहा है। इससे किसी का भला नहीं हो रहा है। समाज के नाम पर नेता बने इन लोगों से समाज को क्या मिल रहा है? केवल जोशीला भाषण और तालियां मिल रही हैं। जब थाने सबके लिए नहीं होंगे, जब न्याय सबके लिए नहीं होगा तो महापुरुष का कैलेंडर छपवाने और लगवाने से भी कुछ नहीं होगा। इसे भी लिखकर पर्स में रख लीजिए।
बाक़ी दलों ने भी धर्म की राजनीति में जगह बनाने का रास्ता खोज लिया है। आम आदमी पार्टी तीर्थ यात्रा करा रही है तो अखिलेश यादव भगवान परशुराम के मंदिर में नज़र आ रहे हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस रामलीला कमेटी को चंदा दे रही है तो ममता दुर्गा पूजा समिति को। ऐसे अनेक उदाहरण आप जानते हैं। आपको लगेगा कि धर्म का भला हो रहा है लेकिन जल्दी ही आपको दिखेगा कि इससे धर्म का भला नहीं हो रहा है। बल्कि धर्म के नाम पर राजनीति का सत्यानाश हो रहा है।