देश को मुस्लिम विरोधी राजनीति के नाम पर मूर्खता की अंधेरी गलियों में जिन जिन लोगों ने धकेला है उसमें...
रवीश कुमार
इस देश को मुस्लिम विरोधी राजनीति के नाम पर मूर्खता की अंधेरी गलियों में जिन जिन लोगों ने धकेला है उसमें सरकारी कर्मचारियों की संख्या भी कम नहीं है। आज वे पेंशन की लड़ाई लड़ रहे हैं। मुझे बधाई दे रहे हैं। मुझे बधाई नहीं चाहिए। मैं सांप्रदायिक जमात का हीरो बनना ही नहीं चाहता। तो उनकी बधाई को ठोकर मारते हुए यह बात भी कहना चाहता हूं कि पेंशन की पुरानी व्यवस्था लागू होनी चाहिए। मैं इस लिए पेंशन के समर्थन में लिखता बोलता हूँ। न कि ऐसे कमजोर और स्वार्थी लोगों की ताली बटोरने के लिए। अक्खा कंट्री में अकेला बंदा हूँ जो यह बात लिखता है।
मुसलमान विरोध के नाम पर घर घर में ज़हर फैला है और किनके लड़के औरतों की नीलामी और दंगाई ख़्याल के हो गए। हर ग़लत और झूठ को सही ठहराया जाने लगा है। ये उन्होंने किया या न किया, इसका जवाब मुझे नहीं अपनी पीढ़ियों को देंगे। इस पोस्ट को शेयर करते हुए सरकारी कर्मचारियों के हाथ काँपने चाहिए और कलेजा धड़कना चाहिए। भारत के अर्जित लोकतंत्र को बर्बाद करने में वे भी शामिल हैं।
सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन मिलनी चाहिए। इस लड़ाई का आधार सही है। नहीं तो दुनिया में किसी के लिए पेंशन की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए। बाक़ी पुरानी पेंशन का समर्थन करें। इसी में सबका हित है। सामाजिक सुरक्षा सभी के लिए बेहतर होनी चाहिए। न कि वोट ख़रीदने का ज़रिया।
अब आता हूँ व्यापारियों पर। यह जाति की जमात है। केवल आर्थिक जमात नहीं है। ख़ैर हर जाति की जमात है तो आप व्यापारियों को दोष नहीं दे सकते। व्यापारियों के धन से संघ और बीजेपी का कितना विकास हुआ, हर व्यापारी को पता है। लेकिन उस पैसे से देश में चारों तरफ़ सांप्रदायिकता फैली। व्यापारियों का मुसलमानों से दिन रात का रिश्ता है तब भी वे चुप रहे।
एक समाज को अपमानित किया गया। उसे माफिया कहा जा रहा है तब भी व्यापारी चुप है। एक वजह यह समझी जा सकती है कि व्यापारी अपना हित देख रहे हैं लेकिन मोदी सरकार ने व्यापारियों को भी बेवकूफ बना दिया। उन्हें पेंशन की ऐसी योजना दी जिसे कोई पंसद नहीं करता। फिर भी व्यापारी नफ़रत की राजनीति को फंड करेंगे। उनमें बोलने का साहस ख़त्म हो गया है।