जिस भाषण के लिए स्वामी प्रसाद की गिरफ़्तारी का वारंट आया है. उसमें कुछ भी भड़काऊ नहीं था
श्याम मीरा सिंह
जिस भाषण के लिए स्वामी प्रसाद मोर्या की गिरफ़्तारी का वारंट आया है. उसमें कुछ भी भड़काऊ नहीं था, बल्कि वो संविधान में उल्लिखित वैज्ञानिक सोच को बढ़ाने वाला भाषण था. जिसे देश के प्रत्येक छात्र और शोधार्थी को पूछना चाहिए।
मोर्या ने कहा था “शादियों में गौरी-गणेश की पूजा नहीं करनी चाहिए। यह मनुवादी व्यवस्था में दलितों और पिछड़ों को गुमराह कर गुलाम बनाने की साजिश है।”
मोर्या ने आगे कहा था- हिंदू धर्म में सुअर को वराह भगवान कहकर सम्मान दे सकते हैं, चूहे को गणेश, उल्लू को लक्ष्मी की सवारी कहकर पूज सकते हैं, लेकिन शूद्र को सम्मान नहीं दिया जाता।
इस भाषण में क्या भड़काऊ है? क्या ये सच नहीं है? क्या ये सच नहीं है कि हिंदू धर्म में गाय के मूत्र को पिया जाता है और दलितों को प्लास्टिक और मिट्टी के बर्तनों में दूर से खाना दिया जाता है। क्या ये सच नहीं है कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश या हिंदू धर्म के बाक़ी भगवान मनुवादी व्यवस्था का हिस्सा हैं! संविधान उम्मीद करता है कि इस देश के नागरिक अपनी संस्कृति का मूल्यांकन करेंगे, आधुनिकता को अपनाएँगे और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देंगे। इतनी साधारण और तार्किक बात कहने पर भी अरेस्ट कर लिया जाएगा तो कैसे किसी धर्मशास्त्र और कुरीति का मूल्यांकन सम्भव है?
मोर्या के इसी भाषण के ख़िलाफ़ साल 2014 में विश्व हिंदू परिषद ने एक FIR करवाई थी. ये वो ही संगठन है जिसका इतिहास धार्मिक हिंसा और खून का इतिहास रहा है
साल 2017 तक मोर्या मायावती जी के साथ रहे. इसके बाद भाजपा में आ गए. इसके बाद मोर्या ने भाजपा का झंडा थाम लिया. जहां उनकी पदोन्नति करते हुए उन्हें मंत्री बना दिया गया. लेकिन उन्होंने जैसे ही BJP छोड़ी, तुरंत वारंट आ गया। ये चीज़ देश की क़ानून व्यवस्था पर नग्न रूप से मुक्त हंसती है. कल तक जिसे आपने मंत्री बना रखा था आज पार्टी छोड़ने पर वही आदमी आपको भड़काऊ भाषण देने वाला लग रहा है. धर्म और क़ानून दोनों का इस्तेमाल सिंहासन सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है। अगर मुल्क से प्यार है तो इस चीज़ से प्यार नहीं हो सकता. भाजपा समर्थकों को विचार करना चाहिए कि इस मुल्क के बुनियादी लोकतांत्रिक ढाँचे को तबाह करके वे क्या पाएँगे.