झूठ बोलने और नौटंकी कर पाने की योग्यता कब से राजनीति करने के लिए ज़रूरी हो गई है ?
भरत जैन
भाजपा का आईटी सेल राहुल गांधी को पप्पू कहकर खींसे निपोरता रहता है । प्रियंका ने उत्तर प्रदेश में नया नारा दिया ' लड़की हूं लड़ सकती हूं ' । महिला सशक्तिकरण के लिए बेहतरीन नारा है । प्रत्युत्तर में स्मृति ईरानी ने राहुल की ओर इशारा करते हुए कहा ,' हां घर में लड़का है ,लड़ नहीं सकता तो लड़की को लड़ना पड़ रहा है '। भाजपाई ज़रूर हंसे होंगे ।
लोगों का मानना है कि राहुल मोदी को चुनौती नहीं दे सकते। पूछने पर कारण बताते हैं की मोदी की तरह तेज़ नहीं हैं। सीधे शब्दों में कहें तो मोदी की तरह जुमलेबाजी नहीं कर सकते , भाषा की बाज़ीगरी नहीं कर सकते, झूठ नहीं बोल सकते और नौटंकी नहीं कर सकते। पर जुमलेबाजी करने , भाषा की बाज़ीगरी करने , झूठ बोलने और नौटंकी कर पाने की योग्यता कब से लोकतंत्र में राजनीति करने के लिए ज़रूरी हो गई है ?
क्या महात्मा गांधी में यह सब गुण थे ? नहीं थे , पर पूरी दुनिया में आदरणीय हैं ! क्या नेहरू में यह सब गुण थे ? नहीं थे , पर एक नवोदित गरीब देश के प्रधानमंत्री होने के बावजूद पूरे विश्व में उनकी बातें सम्मान से सुनी जाती थी। इसके विपरीत ,भक्त कुछ भी कहें और मानें, मोदी आज विश्व में उपहास का विषय है। उनकी कलई खुल चुकी है।
21 सालों से उड़ीसा जैसे पिछले राज्य में नवीन पटनायक मुख्यमंत्री हैं । बने अपने पिता के नाम पर पहली बार ,यह सत्य है। मगर बार-बार क्यों चुने जाते हैं ? कहीं उनका नाम भी नहीं सुनाई पड़ता उड़ीसा के बाहर। उड़िया भाषा भी नहीं बोल पाते। पर काम करते हैं कर्मठता से। काम बोलता है उनका।
उद्धव ठाकरे को कोई अनुभव नहीं था प्रशासन का। पर उनके शासन करने की योग्यता पर कोई उंगली नहीं उठाई गई हालांकि जब से मुख्यमंत्री बने हैं लगभग तभी से कोरोनावायरस पीछे पड़ा है। क्या कहीं नौटंकी कर रहे हैं ? राज्य पर समुचित शासन करने के अलावा भाजपा की नाक में नकेल भी डाल रखी है।
दिल्ली में शीला दीक्षित का क्या परिचय था मुख्यमंत्री बनने से पहले ? गांधी परिवार से नज़दीकी ही उनका परिचय था । पर ख़ामोश रहकर काम करती रहीं और पन्द्रह साल मुख्यमंत्री रहीं। यदि केजरीवाल -अन्ना का प्रायोजित कार्यक्रम ना होता संघ के समर्थन से तो शायद उन्हें किसी और तरह से याद किया जाता। पन्द्रह सालों में दिल्ली की काया पलट कर दी थी।
आज देश को ज़रूरत है ख़ामोशी से काम करने वालों की । 'मौन'मोहन सिंह कहीं बेहतर थे 'हॉरर'मोदी से । राजनीतिक सोच बदलनी पड़ेगी। बार-बार कपड़े बदलने वाले कैमरा जीवी प्रधानमंत्री की हरकतें देखकर सदा नीली पगड़ी और सफ़ेद कुर्ता - पायजामा पहनने वाला वह सरदार आज बहुत याद आ रहा है।
गप्पू से पप्पू ही बेहतर है।