ये चुनाव चंद्रशेखर के लिए अर्द्धपंचवर्षीय परीक्षा है, 2022 के नतीजों से तय होगा 2027 का मुख्यमंत्री
अमन पठान
लेख का शीर्षक पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान मैं भविष्य में होने वाले 2027 के विधानसभा चुनाव का जिक्र क्यों कर रहा हूं तो यह बताना लाजिमी है कि हम आने वाले कल को देख नही सकते लेकिन उसकी कल्पना जरूर कर सकते हैं। मैं वर्तमान की बात इसलिए नही कर रहा हूं क्योंकि वर्तमान की बातें सभी कर रहे हैं। सभी राजनीतिक विशेषज्ञ अपने अपने आंकलन से बता रहे हैं कि इस बार विधानसभा चुनाव में किसका पलड़ा भारी है और किस राजनीतिक दल की सरकार बन सकती है लेकिन कोई आपको यह नही बता रहा है कि भविष्य में यूपी की राजनीति कितनी बदलेगी और 2027 में कौन उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनेगा?
मेरे लिखे एक एक शब्द को याद रखियेगा क्योंकि इस विधानसभा चुनाव के नतीजे 2027 में यूपी का नया मुख्यमंत्री तय करेंगे क्योंकि चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण 2022 में विधानसभा चुनाव की अर्द्धपंचवर्षीय परीक्षा दे रहे हैं जिसकी पंचवर्षीय परीक्षा 2027 में होगी। इस विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर की हार जीत कोई मायने नहीं रखती है लेकिन इस विधानसभा चुनाव के नतीजे चंद्रशेखर के लिए बहुत मायने रखते हैं क्योंकि इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी जितनी कमजोर होगी चंद्रशेखर की पार्टी उतनी मजबूत होगी। उत्तर प्रदेश के दलितों को मायावती के बाद एक नए दलित नेता की तलाश होगी उस तलाश को चंद्रशेखर खत्म कर देंगे।
भाजपा को हराने का ठेका ले चुकी मुस्लिम कौम के पास इस विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के अलावा दूसरा कोई बेहतर विकल्प नहीं है। इसलिए चंद्रशेखर आजाद 2022 में मुसलमानों से कोई उम्मीद न रखें लेकिन यही मुस्लिम कौम 2027 में चंद्रशेखर आजाद को मुख्यमंत्री बनाएगी। दलित मुस्लिम के सहयोग से मायावती यूपी की सत्ता का सुख भोग चुकी हैं। 2027 में दलित मुस्लिम समीकरण ही चंद्रशेखर आजाद को मुख्यमंत्री बनाएगा।
चंद्रशेखर को लगातार दलितों और मुसलमानों के हक़ की आवाज को बुलंद करते रहना होगा क्योंकि यूपी का मुसलमान समाजवादी पार्टी का विकल्प तलाश रहा है। असदुद्दीन ओवैसी यूपी के मुसलमानों को किसी भी तरह एक प्लेटफॉर्म पर कभी नहीं ला पाएंगे। यूपी में कांग्रेस वेंटीलेटर पर है और इस विधानसभा चुनाव के बाद बसपा का खेल खत्म हो जाएगा। अगर इस बार यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनती है तो अखिलेश यादव का कार्यकाल खत्म होते होते मुसलमानों का सपा से मोहभंग हो जाएगा। भाजपा पुनः सत्ता में आ गई तो मुसलमान उस नेता या पार्टी के साथ चले जायेंगे जो उनके हक की आवाज को बुलंद करेगा।
अगर वर्तमान की बात करें तो मुसलमानों के मुद्दे पर सभी राजनीतिक पार्टी खामोश हैं। उदाहरण के तौर पर आप समाजवादी पार्टी को ही देख लीजिए। अखिलेश यादव मनीष गुप्ता की पुलिसिया हत्या का जिक्र तो करते हैं लेकिन अल्ताफ की पुलिसिया हत्या पर चुप्पी साध लेते हैं। पुष्पेंद्र यादव के एनकाउंटर पर सरकार से सवाल करते हैं लेकिन नौशाद और मुस्तकीम के फर्जी एनकाउंटर पर उन्हें सांप सूंघ जाता है। जिस पार्टी के मुखिया ने अपनी पार्टी के संस्थापक सदस्य की कोई खास फिक्र नहीं की हो वो इंसान अपनी पार्टी के समर्थकों की कितनी फिक्र करेगा इसका अंदाजा आज़म खान के मामले से लगाया जा सकता है।
2022 का विधानसभा चुनाव चंद्रशेखर आजाद के लिए अर्द्ध पंचवर्षीय परीक्षा है। इस चुनावी परीक्षा में चंद्रशेखर नतीजों की परवाह न करते हुए फाइनल परीक्षा की तैयारी करें क्योंकि इस चुनाव के बाद मायावती का खेल खत्म होने वाला है। हो सकता है कि मायावती इस विधानसभा चुनाव या 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद राजनीति से संन्यास ले लें। ऐसी स्थिति में बसपा को नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश होगी और तब तक चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश में अपना वर्चस्व कायम कर चुके होंगे।
मेरी दूर दृष्टि जो देख रही है और जो मेरा दिमाग सोच रहा है अगर वैसा ही हुआ तो 2027 के चुनाव से पहले चंद्रशेखर आजाद बसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएंगे। ऐसा हुआ तो चंद्रशेखर को 2027 में मुख्यमंत्री बनने से कोई रोक नहीं पायेगा। मेरी ये भविष्यवाणी गलत होकर भी सच साबित होगी क्योंकि चंद्रशेखर आजाद इसी तरह मेहनत करते रहे तो उनकी आज़ाद समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी अलग पहचान बना लेगी और आज़ाद समाज पार्टी से चुनाव लड़ने के लिए नेताओं की लंबी फेहरिस्त होगी जिससे आज़ाद समाज पार्टी को यूपी में प्रचंड बहुमत हासिल होगा।