सवाल है दलितों ने BJP को वोट क्यों दिया?
ज़ैघम मुर्तजा
सवाल है दलितों ने बीजेपी को वोट क्यों दिए? जवाब है, इस डर में कि मियां आ गए तो सरे आम गालियों से नवाज़ेंगे और जाट, गूजर, यादव उनकी पट्टे की ज़मीने छीन लेंगे। कहना थोड़ा कड़वा हो जाएगा मगर मुसलमान की अक्सरित सियासी लिहाज़ से बेहद आसामाजिक है। कितने मुसलमान बाल्मीकि का छुआ खा सकते हैं और कितने जाटव या खटीक के घर शादी, तेरहवीं का भोज कर सकते हैं? ये छोड़िए, कितने जाट, यादव, गूजर के घर आपका आना जाना है?
कितने बामन या ठाकुर से आपके सामाजिक रिश्ते हैं। दो तिहाई मुसलमान ठाकुर या ब्राह्मण की नज़र में मुंह लगाने लायक़ नहीं हैं मगर यही दो तिहाई अपने से बेहतर होने के बावजूद खटीक, बाल्मिकी, कोरी, कुर्मी, बग़वान या धीमर को कुछ नहीं समझते। किस मुंह से वोट मांगते हो बे? पार्टी का टिकट या जय भीम नारा लगा देने भर के अहसान में? दूसरी तरफ पंडित जी के लिए दलित तभी तक अछूत है जब तक मामला सामाजिक प्रतिष्ठा का है।
पंडित जी उसकी लड़की ब्याह लेते हैं और अरष्टी का भोज भी चर लेते हैं। ख़ैर, मीडिया या बीजेपी के गढ़े नैरेटीव ख़रीदने से पहले देखिए तुम्हारे सताए लोग कौन हैं, किसको तुम हक़ीर समझते हो और किस किसको झिड़कते हो। गठबंधन सिर्फ वोट की नीयत से करोगे तो सामने वाला बार-बार तुम्हारी तशरीफ पर थूक कर चला जाएगा। या तो इतनी औक़ात रखो कि सामने वाला अहसान में दब जाए या फिर इतने इंसान बनो कि सब बराबर दिखें।
मोबाइल पर किसी मवाली की पतंग उड़ाने या सोशल मीडिया पर किसी अहंकारी की साइकिल चलाने भर से सत्ता या व्यवस्था बदलने वाली है। न्याय होना ही नहीं चाहिए, होता हुआ प्रतीत भी होना चाहिए वरना न्याय व्यवस्था का फर्ज़ी डर भी आपकी सियासी ऐसी तैसी करने के लिए काफी है :)