हिन्दी के अख़बारों की इस मेहनत को भी BJP की मेहनत में जोड़ा जाना चाहिए
रवीश कुमार
योगी की सीट पर प्रदेश के औसत से छह प्रतिशत कम वोटिंग हुई। यूपी में औसत मतदान साठ प्रतिशत से अधिक हुआ है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट पर मतदान 54 फ़ीसदी से कम हुआ। राज्य में हुए मतदान के औसत से 6 प्रतिशत कम मतदान हुआ है।
लेकिन अख़बार इस बात का प्रमुखता से उल्लेख नहीं करता। बल्कि उल्लेख ही नहीं करता। मुख्यमंत्री की सीट पर राज्य के औसत से इतना कम मतदान हुआ है यह बताने के बजाए इस खबर की हेडलाइन घुमा दी जाती है। लिखा जाता है कि यहाँ 45 साल में सबसे अधिक रिकार्ड हुआ है। 53.30 प्रतिशत मतदान हुआ है। गोरखपुर को बदल देने के दावे के बीच इतना कम मतदान होता है और अख़बार लिख रहा है कि 2017 की तुलना में 2.32 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ है।
राज्य के औसत से कम मतदान होने की जगह केवल उस सीट के पिछले मतदान से तुलना छपती है। क़ायदे से बताना चाहिए कि जो सीट बीजेपी के पास 1989 से है वहाँ इतना कम मतदान क्यों होता है, जबकि अख़बार में दिए गए आँकड़े वही बात कह रहे हैं। ठीक है कम मतदान के बाद भी यह सीट भाजपा के पास जाती है लेकिन प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेता जहां से चुनाव लड़ रहे हों वहाँ इतना कम मतदान हो इसे तो एक लाइन में उजागर किया ही जा सकता था।
तो इस तरह से अख़बारों ने आपके सोचने की दिशा तय की है। हिन्दी के अख़बारों की इस मेहनत को भी भाजपा की मेहनत में जोड़ा जाना चाहिए। मेरा मत है कि गोदी मीडिया और उसमें काम करने वाले सभी लोगों और उसके बजट को बीजेपी का संसाधन मानना चाहिए। बीजेपी के लिए गोदी मीडिया ने कम खर्च नहीं किया है। उनकी मेहनत के आगे कार्यकर्ता की मेहनत कुछ नहीं है।