भ्रम में लिए गलत निर्णय की वजह से हार गए अखिलेश यादव
अमन पठान
रैलियों और रथ यात्रा में उमड़ती भीड़ को देखकर अखिलेश यादव भ्रम का शिकार हो गए। भीड़ देखकर उन्हें लग रहा था कि वो जीत के बेहद करीब हैं जबकि अखिलेश यादव जीत से कोसों दूर थे। अखिलेश यादव जिस रास्ते पर चल रहे थे उस रास्ते पर भीड़ अधिक होने के कारण हार का बड़ा गड्ढा उन्हें नजर नही आया। जिस कारण उनकी साइकिल टूटकर चकनाचूर हो गई।
भाजपा को हराने का ठेका ले चुकी मुस्लिम कौम का अधिकतर वोट समाजवादी पार्टी को मिला। जिसका जीवांत उदाहरण समाजवादी पार्टी के टिकट पर मुस्लिम प्रत्याशियों मिली जीत है। सपा को सबसे ज्यादा नुकसान बसपा ने पहुंचाया है। मुसलमानों ने ओवैसी को सिरे से खारिज कर दिया लेकिन कुछ सीटों पर बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी सपा की हार का कारण बने। सपा की हार का सबसे बड़ा कारण यह रहा कि अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर आजाद को अपने गठबंधन में शामिल नही किया। अगर चंद्रशेखर आजाद सपा गठबंधन का हिस्सा होते तो बसपा का वोट बड़ी संख्या में भाजपा में ट्रांसफर नही होता।
मायावती की निष्क्रियता के चलते बसपा के वोटर इस दुविधा में थे कि मायावती दमदारी से चुनाव नही लड़ रही हैं और उनके प्रत्याशी जीत नही रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद कमजोर संगठन और संसाधनों की कमी के कारण दलित वोटरों में अपनी पकड़ मजबूत नही कर पाए। अगर चंद्रशेखर आजाद सपा गठबंधन का हिस्सा होते तो इस विधानसभा चुनाव के परिणाम कुछ अलग होते क्योंकि दलित वोटरों को मायावती के विकल्प की तलाश है और फिलहाल चंद्रशेखर आज़ाद से बेहतर कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
भले ही गोरखपुर में चंद्रशेखर आजाद की जमानत जब्त हो गई हो लेकिन उनका कद पहले से ज्यादा बढ़ गया है। इस चुनाव में मायावती के शून्य हो जाने से दलित वोटरों का मनोबल टूट चुका है और बसपा से मोहभंग भी हो रहा है। ऐसे में चंद्रशेखर आजाद दलितों के बड़े नेता बन सकते हैं। अब चंद्रशेखर आजाद को अपने संगठन को मजबूत करने की आवश्यकता है क्योंकि मायावती का खेल खत्म हो चुका है। सोशल मीडिया पर खबर यह भी उड़ रही है कि भाजपा मायावती को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना सकती है। मायावती के शून्य हो जाने से सवाल यह उठ रहा है कि विधानसभा से लेकर संसद में उनके हक की आवाज कौन बुलंद करेगा?
अगर अखिलेश यादव को खुद को मायावती की तरह शून्य होने से बचाना है तो वह अभी से आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दें और बिना देर किए चंद्रशेखर आजाद और असदुद्दीन ओवैसी से बिना किसी शर्त के गठबंधन कर लें। चंद्रशेखर और ओवैसी को तमाम संसाधन उपलब्ध कराएं ताकि वह अपने अपने समाज में अपनी पैठ बना सकें। अगर 2024 तक चंद्रशेखर आजाद और असदुद्दीन ओवैसी अपने अपने समाज के मसीहा बन गए तो समाजवादी पार्टी गठबंधन यूपी में सबसे ज्यादा लोकसभा सीट जीत लेगा।
अगर अखिलेश यादव फिर किसी भ्रम या गलत निर्णय का शिकार हुए तो बसपा की तरह सपा का भी खेल खत्म हो जाएगा। कहते हैं कि डूबते को तिनके का सहारा होता है। अब सपा का जहाज ऐसे भंवर में फंस गया है जिसे दलित और मुस्लिम मिलकर ही पार लगा सकते हैं। इस विधानसभा चुनाव में मुसलमानों ने सपा का भरपूर समर्थन किया। मुस्लिम समुदाय में यह भी चर्चा है कि भाजपा इतनी बुरी भी नही है जितना बुरा उसे बताया जाता है। अगर मुसलमान भाजपा को वोट देंगे तो भाजपा भी उनके बारे में सोचेगी। किसी कारण मुसलमानों का झुकाव भाजपा की ओर हो गया तो सपा के पास बचेगा क्या? अगर समय रहते अखिलेश यादव ने कोई महत्वपूर्ण निर्णय नही लिया तो आगामी लोकसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव की सियासत खत्म हो जाएगी।