कोई विवेक अग्निहोत्री से नहीं पूछ रहा है कि द कश्मीर फाइल्स में नरेंद्र मोदी क्यों नहीं हैं?
सौमित्र रॉय
कोई विवेक अग्निहोत्री से नहीं पूछ रहा है कि द कश्मीर फाइल्स में नरेंद्र मोदी क्यों नहीं हैं? या फ़िर जब कश्मीर घाटी से हिन्दू कश्मीरी पंडितों का पलायन हो रहा था, तब आज के हिन्दू हृदय सम्राट नरेंद्र मोदी क्या कर रहे थे। इतिहास को राजनीति से अलग करके नहीं देखा जा सकता। क्रिस्टोफर जेफरेलोट की किताब- मोदीस इंडिया, हिन्दू नैशनलिज़्म एंड द राइज ऑफ एथनिक डेमोक्रेसी को पढ़ना चाहिए।
आडवाणी ने 1986 में बीजेपी की कमान संभालने के बाद 1987 में मोदी को आरएसएस से बीजेपी में बुलवाया। मोदी गुजरात के संगठन मंत्री बने। 1991 में मोदी बीजेपी के राष्ट्रीय संगठक बन गए। तब मुरली मनोहर जोशी बीजेपी प्रमुख थे। मोदी को कन्याकुमारी से कश्मीर तक की एकता यात्रा में समन्वयक की ज़िम्मेदारी मिली।
दिसंबर 1991 में कन्याकुमारी से निकली यह यात्रा 26 जनवरी 1992 में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा लहराने के साथ ख़त्म हुई। क्या इस यात्रा और उससे पहले भारत और कश्मीर घाटी की साम्प्रदायिक पृष्ठभूमि विवेक अग्निहोत्री की फ़िल्म का हिस्सा नहीं होनी चाहिए थी?
क्या बीजेपी की रथ यात्रा और कश्मीर में हिन्दू पंडितों के पलायन का कोई सीधा संबंध नहीं, जबकि तत्कालीन वीपी सिंह सरकार में बीजेपी भी हिस्सेदार थी? और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन बजाय आतंकवाद की आग को शांत करने के, उसमें घी डाल रहे थे? क्या आज के कश्मीर और 1991 के उस कश्मीर में ज़मीनी स्तर पर कोई अंतर है, सिर्फ एक बात के कि वहां 370 हट चुका है?
अगर 19 जनवरी 1991 से वहां इतनी बड़ी संख्या में हिन्दू पंडितों का पलायन नहीं हुआ होता और घाटी में शांति रहती, जगमोहन ने पंडितों का पलायन रोका होता, उन्हें बस, ट्रक, ट्रॉली और गाड़ियां नहीं दी होतीं तो 26 जनवरी 1992 को बीजेपी का झंडावंदन कैसे यादगार बनता? नरेंद्र मोदी उसके हिस्सेदार थे, हैं और आगे इतिहास में भी रहेंगे। अगर, फाइल्स बनानी ही है तो पूरे कागज़ लगाइए।