जब भी इस देश में सत्ता से ज़ुल्म का हिसाब मांगा जाएगा, तब अदालतें भी बख्शी नहीं जाएंगी
सौमित्र रॉय
श्रीलंका के पूर्व पीएम महिंदा राजपक्षे और उनके परिवार ने त्रिंकोमाली नौसेना बेस में शरण ली है। कर्फ्यू के बावज़ूद हज़ारों लोग एक निरंकुश, परिवारवादी और सिंहली राष्ट्रवाद की आड़ में देश का बेड़ा ग़र्क करने वाले राजपक्षे परिवार के खून के प्यासे हो चुके हैं।
श्रीलंका का पड़ोसी भारत 2024 में फ़िर मंदिर-मस्जिद की ज़मीन तैयार कर रहा है। इसके सिवा मोदी सरकार के पास जीतने का कोई दूसरा मंत्र नहीं है। यह नरेंद्र मोदी के 2014 में कुर्सी संभालने के एक साल बाद की बात है, जब संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने संसद में बताया था कि ताजमहल के हिन्दू मंदिर होने का कोई प्रमाण नहीं है।
फिर ASI ने अगस्त 2017 में कहा कि ताजमहल सिर्फ़ एक मकबरा है, मंदिर नहीं। इसके बावजूद ताजमहल के सर्वे के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया गया है। नरेंद्र मोदी की सत्ता जानती है कि जिन संस्थाओं को उसने तबाह किया है, उसमें कोर्ट भी एक है।
उसी कोर्ट के कंधे पर बंदूक रखकर बहुत से गैरकानूनी काम को वैधानिक किया जा सकता है- ठीक बाबरी ढांचे के विध्वंस की तरह। फिर चाहे इसके लिए देश की सांस्कृतिक धरोहरों की कब्र क्यों न खोदनी पड़े। अंग्रेजों के ज़माने का राजद्रोह कानून 124 ए भी एक है, जिस पर पहले सरकार ने कहा कि विचार की कोई ज़रूरत नहीं।
अब कह रही है कि विचार होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने ठोस जवाब के लिए 24 घंटे का समय दिया है। जब भी इस देश में सत्ता से ज़ुल्म का हिसाब मांगा जाएगा, तब अदालतें भी बख्शी नहीं जाएंगी। ठीक उसी तरह, जब सुकरात की हत्या के बाद 500 से ज़्यादा जजों को देश से खदेड़ दिया गया था।
मैं मानता हूं कि एक दिन ऐसा होगा, क्योंकि सरकार की धर्मांधता ने भारत को लूट तंत्र बना दिया है। अदाणी अब बड़े अस्पताल खरीदेंगे, जिसमें शाही इलाज होगा। ग़रीब सड़कों पर मरेंगे। सरकार देखेगी। भीड़ किसी की नहीं होती। उसका कोई धर्म नहीं होता। राजपक्षे ने भी भीड़ जुटाई थी। आज वही भीड़ उनकी जान की प्यासी है। सड़कें ज़ल्द गुलज़ार होंगी, क्योंकि देश की संसद इन मुद्दों पर मौन है। लाज़िम है कि हम देखेंगे।