नेहरू जी अपने सुरक्षा अधिकारियों से पैसे उधार क्यों लेते थे?
कृष्णकांत
नेहरू जी ने आनंद भवन को छोड़कर अपनी सारी संपत्ति देश को दान कर दी थी. उनके पिता देश के बड़े वकीलों में एक थे और कहते हैं कि आंदोलन के शुरुआती दिनों में उनके ही पैसे से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और आंदोलन की तमाम गतिविधियां चलती थीं। उत्तर प्रदेश में वे पहले ऐसे आदमी थे जिनके पास एक जीप हुआ करती थी। 1946 में अंतरिम सरकार बनाने से पहले नेहरू ने अपनी लगभग 95 फीसदी संपत्ति देश के नाम कर दी।
नेहरू जी के सचिव रहे एमओ मथाई ने अपनी किताब 'रेमिनिसेंसेज ऑफ नेहरू एज' में लिखा है, "1946 के शुरू में उनकी जेब में हमेशा 200 रुपए होते थे, लेकिन जल्द ही यह पैसे खत्म हो जाते थे क्योंकि नेहरू पाकिस्तान से आए परेशान शरणार्थियों में पैसे बांटते रहते थे। ख़त्म हो जाने पर वे और पैसे मांगते। इससे परेशान हो कर मथाई ने उनकी जेब में रुपए रखवाने ही बंद कर दिए। लेकिन नेहरू की भलमनसाहत इस पर भी नहीं रुकी।
वे शरणार्थियों में बांटने के लिए अपने सुरक्षा अधिकारी से पैसे उधार लेने लगे। मथाई ने एक दिन सभी सुरक्षा अधिकारियों का आगाह किया कि वे नेहरू को एक बार में दस रुपए से ज़्यादा उधार न दें। मथाई नेहरू की इस आदत से इतने आजिज़ आ गए कि उन्होंने बाद में प्रधानमंत्री सहायता कोष से कुछ पैसे निकलवा कर उनके निजी सचिव के पास रखवाना शुरू कर दिए ताकि नेहरू की पूरी तनख़्वाह लोगों को देने में ही न खर्च हो जाए।"
एक और किस्सा है जो नेहरू के सूचना अधिकारी रहे जाने-माने पत्रकार कुलदीप नय्यर ने बीबीसी के पत्रकार रेहान फजल को सुनाई थी।
कहानी ये है कि नेहरू जी की बहन विजय लक्ष्मी पंडित एक बार शिमला के सर्किट हाउस में ठहरी थीं। वे वहां से चली गईं तो पता चला कि उनके रहने का बिल 2500 रुपये बना है। तब हिमाचल प्रदेश पंजाब का हिस्सा था। भीमसेन सच्चर मुख्यमंत्री थे। राज्यपाल चंदूलाल त्रिवेदी ने उनसे कहा कि इस 2500 रुपये को सरकार के विभिन्न खर्चों में दिखा दीजिए। लेकिन सच्चर ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने नेहरू जी को पत्र लिखा कि इस खर्च को किस मद में डाला जाए। नेहरू जी ने उनसे कहा कि इस बिल का भुगतान वे खुद करेंगे लेकिन एक बार में नहीं पांच किश्तों में दे पाएंगे। और उन्होंने ये अपने निजी बैंक खाते से लगातार पांच महीनों तक पंजाब सरकार के नाम पांच सौ रुपये के चेक काटकर भेजे।
आज दसलखा सूट, लाख दो लाख का चश्मा, लाखों के सूटबूट, 8,000 करोड़ का विमान, 20,000 करोड़ का हवामहल और 50 करोड़ की रैली करने वाले कहते हैं कि हम भी नेहरू बनेंगे। बन जाओ लेकिन वह ईमान कहां से लाओगे?