क्या आपको पता है कि शुरू में सरदार पटेल भी महात्मा गांधी का मजाक उड़ाया करते थे?
कृष्णकांत
अफ्रीका में महात्मा गांधी का जलवा कायम हो चुका था। भारत में भी उनके चर्चे होने लगे थे। गांधी का जो रूप यहां पहुंचा, वह सरदार पटेल को पसंद नहीं आया। सरदार पटेल गांधी जी के विचारों से बिल्कुल प्रभावित नहीं हुए। कहते थे कि हमारे देश में पहले से महात्माओं की कमी नहीं है, हमें काम करने वाला चाहिए। गांधी बेचारे गरीब लोगों से ब्रम्हचर्य की बातें क्यों करते हैं? ये भैंस के आगे भागवत गाने जैसा है।
साल 1916 की बात है। गर्मियों में गांधी जी गुजरात में अहमदाबाद के एक क्लब में आए। जब वे वहां पहुंचे तो उस वक्त सरदार पटेल अपने वकील दोस्त जीवी मावलंकर के साथ ब्रिज खेल रहे थे। मावलंकर गांधी से बहुत प्रभावित थे। वे गांधी से मिलने के लिए दौड़ पड़े। पटेल ने तंज किया, मैं अभी से बता दूं कि वो तुमसे क्या पूछेगा? वो पूछेगा कि गेहूं से छोटे कंकड़ निकालना जानते हो कि नहीं? फिर वो बताएगा कि इससे देश को आजादी कैसे मिल सकती है?
लेकिन अभी तक भारत में गांधी जी का राजनीतिक सफर शुरू नहीं हुआ था। गांधी जी अफ्रीका से वापस आकर भारत भ्रमण कर रहे थे। इस भ्रमण के दौरान वे लोगों से मिलते थे, समझने की कोशिश करते थे और देश की आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए लोगों का आह्वान करते थे।
फिर आया चंपारण। गांधी जी ने चंपारण के किसानों की मुक्ति के लिए चंपारण सत्याग्रह शुरू किया। चंपारण में गांधी जी की सफलता से सरदार सन्न रह गए। उन्हें लगा कि जैसा मैं सोच रहा हूं, शायद वैसा नहीं है। ये आदमी दमदार है। इसके बाद सरदार गांधी से जुड़ गए। खेड़ा सत्याग्रह में पटेल, गांधी के और नजदीक आए।
इसके बाद असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तो पटेल ने भी अपनी वकालत भी छोड़ दी और पूरी तरह से गांधी के निष्ठावान भक्त बन गए। बारदोली सत्याग्रह की अगुआई खुद पटेल ने की और ब्रिटिश सरकार को झुका दिया। इस आंदोलन के बाद गुजरात की महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि दी थी।
सरदार पटेल गांधी इस हद तक गांधी जी के प्रति निष्ठावान थे कि जब महात्मा गांधी ने तय किया कि नेहरू प्रधानमंत्री बनेंगे तो विरोध तक नहीं किया। यहां तक कि गांधी जी की मौत के बाद वे नेहरू के साथ और मजबूती से खड़े हुए क्योंकि गांधी जी ऐसा चाहते थे। अपनी मौत से कुछ दिन पहले पटेल ने एक भाषण में कहा, अब महात्मा हमारे बीच नहीं हैं। नेहरू ही हमारे नेता हैं। बापू ने नेहरू को अपना उत्तराधिकारी चुना था। अब ये बापू के सिपाहियों का कर्तव्य है कि वे बापू के निर्देश का पालन करें और मैं गैरवफादार सिपाही नहीं हूं।
आजकल कुछ गदहे इधर मजाक उड़ाते मिल जाते हैं कि चरखा से आजादी नहीं आई, लाठी से नहीं आई, अहिंसा से नहीं आई। मैं सोचता हूं कि ऐसे गदहे सरदार पटेल को मिल जाते तो कड़क मिजाज सरदार इन्हें जिंदा दफना देते।