तो भारत की हालत भयंकर महंगाई और दिवालिएपन से जूझ रहे श्रीलंका और पाकिस्तान जैसी हो सकती है
सौमित्र रॉय
2014 में इंडिया शाइनिंग का बैनर लगाकर कुर्सी संभालने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने दो बड़े वादे किए थे- एक तो हर साल 2 करोड़ नौकरी और दूसरा विदेशों से कालाधन वापस लाकर देश के हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख रुपए जमा करने का वादा, जिसे एक इंटरव्यू में गृह मंत्री अमित शाह ने ‘जुमला’ बताया था।
फिर 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री ने केवल 4 घंटे का नोटिस देकर देश में नोटबंदी लागू कर दी। भारत ने अपनी 86% मुद्रा लुटा दी। छोटे उद्योग-धंधे चौपट हो गए और बैंकों में डूबत ऋण (NPA) बढ़ता गया। जीडीपी 6.2% से लुढ़कते हुए कोविड की महामारी से ठीक पहले 4.1% पर आ गई। उसके बाद कोविड महामारी की दोनों लहर में अनियोजित लॉकडाउन ने इकोनॉमी का यह हाल किया कि वह -7.3% पर जा धंसी।
मोदी सरकार सालाना दो करोड़ नौकरियां तो दूर, केवल 6.98 लाख नौकरियां ही जुटा पाई। वजह यह रही कि नोटबंदी के दुष्प्रभाव से देश में 67% छोटे और मझोले उद्योग (MSME) बंद हो गए, जबकि 66% उद्योगों का मुनाफा 50% तक घट गया। असल में देश में 95% नौकरियां अनौपचारिक क्षेत्र से आती हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में इस समय 8.72 लाख पद खाली हैं। इनमें बड़ा हिस्सा भारतीय सेना और रेल्वे का है। सेना में दो साल से भर्ती नहीं हुई है और रेल्वे में 1.5 लाख से ज्यादा पदों को खत्म किया जा रहा है।
पेट्रोलियम और खाद्य पदार्थों की महंगाई ने देश की घरेलू बचत को जीडीपी के 30% पर ला खड़ा किया है, जो कि 8% आर्थिक विकास के लिए 36% पर होनी चाहिए थी। मई में यह आंकड़ा और नीचे गिरकर 25% तक जा सकता है, क्योंकि मार्च-अप्रैल में कई चीजों के दाम बेतहाशा बढ़े हैं।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब केवल इतना है कि इससे एक साल तक का आयात बिल चुकाया जा सकता है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया बीते एक महीने में कई ऐतिहासिक गिरावटों के बाद अभी 77.52 पर टिका है। भारत का व्यापार घाटा 58.36 बिलियन डॉलर का हो चुका है, क्योंकि निर्यात के मुकाबले आयात में 24% की बढ़ोतरी हुई है।
इन हालात में सरकार ने सुधारात्मक कदम नहीं उठाए तो भारत की हालत भयंकर महंगाई और दिवालिएपन से जूझ रहे श्रीलंका और पाकिस्तान जैसी हो सकती है।