UP का मुसलमान आज़म ख़ान को नज़र अंदाज़ कर सकता है लेकिन समाजवादी पार्टी को नहीं
शाहनवाज अंसारी
उत्तर प्रदेश का मुसलमान न ही आज़म ख़ान साहब की वजह से समाजवादी पार्टी को वोट देता है और न ही नसीम-उ-द्दीन सिद्दीक़ी की वजह से बहुजन समाज पार्टी को देता था। ठीक वैसे ही बिहार में बिहार का मुसलमान न अब्द-उल-बारी सिद्दीक़ी साहब की वजह से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को वोट करता है और न ही मरहूम शहाब-उ-द्दीन साहब की वजह से राजद को वोट करता था।
अपने ज़िले और आस-पास के ज़िलों में आज़म ख़ान साहब का असर है या शहाब-उ-उद्दीन साहब का असर था। इससे इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन यह कहना कि पूरे उत्तर प्रदेश या बिहार का मुसलमान आज़म ख़ान/नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी या मरहूम शहाब-उ-द्दीन/अब्द-उल-बारी सिद्दीक़ी की वजह से सपा/राजद को वोट करता है तो यह कोरी बकवास बातें हैं।
यूपी/बिहार के मुसलमानों ने अपना नेता हमेशा से मुलायम सिंह यादव/लालू प्रसाद यादव को माना है। आपको क्या लगता है? कल आज़म ख़ान साहब सपा छोड़ दें तो यूपी का मुसलमान सपा से मुंह मोड़ लेगा? या मरहूम शहाब-उ-द्दीन साहब की अहलिया अगर राजद छोड़ देती हैं तो बिहार का मुसलमान राजद से मुंह फेर लेगा? नहीं, क़त्तई नहीं।
इलेक्शन के वक़्त अपने ज़िले और आस-पास के ज़िलों में ही यह लोग असर डाल सकते हैं। पूरे प्रदेश में नहीं। क्योंकि यूपी/बिहार इन दोनों सूबों का मुसलमान इन्हें अपना नेता नहीं मानता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में तक़रीबन 80 सीटें हैं। इन 80 सीटों में एक भी ऐसी सीट नहीं है जहां का मुसलमान आज़म ख़ान की वजह से सपा को वोट करता है। या आज़म ख़ान की वजह से हार जीत तय होती हो। वही हाल बिहार का है। मरहूम शहाब-उ-द्दीन साहब का भी यही मामला था।
आज उनकी ग़ैर-मौजूदगी में उनके परिवार का हाल देख लीजिए। अंदाज़ा लग जायेगा और यह बात सपा/राजद से जुड़े सभी बड़े मुस्लिम नेताओं को मालूम है। यूपी का मुसलमान आज़म ख़ान को नज़र अंदाज़ कर सकता है लेकिन समाजवादी पार्टी/मुलायम सिंह यादव को नहीं। बिहार का मुसलमान हीना शहाब साहिबा को नज़र अंदाज़ कर सकता है लेकिन राजद/लालू प्रसाद यादव को नहीं। मुझे लगता है यूपी/बिहार के मुसलमानों की जो आस्था सपा/राजद में है। वह कई दशक तक ख़त्म होने वाला नहीं है।