कभी 2 रुपये रोजाना पर मजदूरी करती थी ये दलित महिला, अपने दम पर खड़ी की 700 करोड़ की कंपनी
कल्पना सरोज का जन्म महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गांव रोपरखेड़ा में हुआ था, वो जिस परिवर में जन्मी वो काफी गरीब था, गुजारा भी काफी मुश्किल से होता था, कल्पना सरकारी स्कूल में पढी, लेकिन एक दलित होने की वजह से स्कूल में कई समस्याएं झेलनी पड़ी, सिर्फ 12 साल की उम्र में उनकी शादी 10 साल बड़े शख्स से कर दी गई।
कल्पना सरोज ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि वो जब अपने ससुराल गई, तो उन्हें कई यातनाएं झेलनी पड़ी, वो लोग उन्हें खाना नहीं देते थे, बाल पकड़ कर पीटते थे, ऐसा बर्ताव करते थे कि कोई जानवर के साथ भी वैसा ना करे, इन सभी से कल्पना की हालत खराब हो चुकी थी, लेकिन फिर एक बार कल्पना के पिता उनसे मिलने आये, बेटी की दशा देख उन्होने समय बर्बाद नहीं किया, और उन्हें अपने साथ ले गये।
16 साल की उम्र में वो मुंबई अपने चाचा के पास चली गई, कल्पना सिलाई का काम जानती थी, तो उनके चाचा ने उन्हें एक कपड़ा मिल में नौकरी दिलवा दी, जहां उन्हें रोजाना 2 रुपये मिलते थे, फिर यहां से कल्पना को जिंदगी की राह दिखने लगी, यहां कल्पना ने देखा कि सिलाई और बुटीक के काम में बहुत स्कोप है, जिसे एक बिजनेस के तौर पर समझने का उन्होने कोशिश की, उन्होने अनुसूचित जाति को मिलने वाले लोन से एक सिलाई मशीन के अलावा कुछ अन्य सामान खरीदा, एक बुटीक शॉप खोला, फिर उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कल्पना जब 22 साल की हुई, तो उन्होने फर्नीचर का बिजनेस शुरु किया, इसके बाद स्टील फर्नीचर के एक व्यापारी से शादी कर ली, 1989 में एक बेटी और बेटे की जिम्मेदारी छोड़ पति दुनिया से गुजर गये।
कल्पना सरोज के संघर्ष तथा मेहनत को जानने वाले उनके मुरीद हैं, मुंबई में उन्हें पहचान मिलने लगी, इसी जान-पहचान के बल पर कल्पना को पता चला कि 17 साल से बंद पड़ी कमानी ट्यूब्स को सुप्रीम कोर्ट ने उसके कामगारों से शुरु करने को कहा है, कंपनी के कामगार कल्पना से मिले, कंपनी को पिर से शुरु करने में मदद की अपील की, ये कंपनी कई विवादों के चलते 1988 से बंद पड़ी थी, कल्पना ने वर्करों के साथ मिलकर मेहनत तथा हौसले के दम पर 17 सालों से बंद पड़ी कंपनी में जान फूंक दी, ये कल्पना का ही कमाल है कि आज कमानी ट्यूब्स 500 करोड़ से भी ज्यादा की कंपनी बन चुकी है।
उनकी इस उपलब्धि के लिये 2013 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा गया, कोई बैंकिंग बैकग्राउंड ना होते हुए भी उन्हें भारतीय महिला बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल किया गया, इसके अलावा कल्पना सरोज कपानी स्टील्स, केएस क्रिएशंस, कल्पना बिल्डर एंड डेवलपर्स, कल्पना एसोसिएट्स जैसी दर्जनों कंपनियों की मालकिन है, जिनका टर्नओवर करोड़ों का है, समाजसेवा तथा उद्यमिता के लिये कल्पना को पद्मश्री और राजीव गांधी रत्न के अलावा देश-विदेश के दर्जनों पुरस्कार मिल चुके हैं।