कॉरपोरेट्स के 11 लाख करोड़ के लोन माफ़ न किये होते तो आज आटा-दाल पर GST की नौबत न आती
सौमित्र रॉय
देश में अजीब सी भर्राशाही चल रही है। संसद चल रही है, लेकिन सरकार के पास भयानक महंगाई का कोई माकूल जवाब नहीं है। लिहाजा, संसद ठप है। कल तक कांग्रेस की UPA सरकार को पानी पी-पीकर गाली देने वाली मोदी सरकार हर फैसले पर उन्हीं की ओर निशाना साध देती है।
वित्त मंत्री ने आज UPA सरकार के दौरान आटा-दाल पर लिए गए VAT की सूची जारी की। लेकिन यह नहीं बताया कि 1 जुलाई 2017 को इन सबसे आज़ादी का ढोल पीटकर सत्ता में बैठी उनकी सरकार को दोबारा आर्थिक ग़ुलामी का दौर लाने की ज़हमत क्यों उठानी पड़ी?
साफ़ है कि भारत सरकार कंगाल हो चुकी है। बीते 7 साल में 11 लाख करोड़ के लोन कॉरपोरेट्स के माफ़ किये गए। ये अगर तिजोरी में होते तो आज आटा-दाल पर GST की नौबत न आती। ऐसा क्यों नहीं हुआ? इसका जवाब प्रधानमंत्री के पास है। मामला अदाणी-अम्बानी से जुड़ा है। लेकिन जवाब कोई नहीं मांग रहा है।
सिर्फ़ GST से सरकार टिकी रहेगी। 1.46 लाख करोड़ से भी ज़्यादा टैक्स आएगा, क्योंकि ग़रीब, मध्यम वर्ग के रोजमर्रा के उपयोग से जुड़ी हर चीज़ पर अब GST है। लेकिन, 1 जुलाई 2017 को जिस आर्थिक आज़ादी के ऐलान के साथ GST लागू की गई थी, उसमें कफ़न के कपड़े और दफ़न की प्रक्रिया पर भी टैक्स लगेगा, यह अवाम को नहीं पता था।
अवाम के पीठ पर GST का चाबुक तगड़ा पड़ा है। चावल के दाम 35% बढ़े हैं। जो नौकरीपेशा लोग पैकेज्ड, ब्रांडेड अनाज लेते थे, अब खुला अनाज लेने लगे हैं। यानी, पहले से बेहाल FMCG पर एक और चाबुक पड़ने वाली है। दिल्ली से मिलने वाले GST और महाराष्ट्र में GST से होने वाली आय में 4 गुने का अंतर है।
बिहार से लेकर 6 ग़रीब राज्यों की कुल GST का संकलन अकेले महाराष्ट्र निकालता है, जहां अब बागियों की सरकार है। इस कंगाली भरे दौर में जबकि औरंगजेबी सरकार उन्हीं तबके से जजिया वसूल रही है, जिन्होंने उसे वोट दिए- इसी निम्न, मध्यम वर्ग के आंगन में मुफ़लिसी का सन्नाटा पसरा है।
स्कूल की फ़ीस, कॉपी-किताब, पेंसिल, शार्पनर और बस का किराया तक-सब महंगे हो चुके हैं। बाहर कोठियों की चमक-दमक और भीतर एक अजीब सी अनिश्चितता। इस बीच रुपये के 80 पार हो जाने के बाद तेल कंपनियों का घाटा और बढ़ा है। बढ़ी हुई GST से भी भरपाई मुमकिन नहीं है।
बैंकों को बेचने की तैयारी जोरों पर है। लेकिन उससे पहले तगड़ी लोन माफ़ी होगी, यानी आपकी और पूंजी डूब जाएगी। आज विदेश मंत्री श्रीलंका पर प्रेजेंटेशन दे आए। भारत की स्थिति पर प्रेजेंटेशन कौन देगा? कौन जवाब मांगेगा कि वेल्थ टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स में कटौती कब तक जारी रहेगी?
कोई नहीं पूछ रहा। सबके अपने एजेंडे हैं। भरपेट लोगों से वाट्सएप ज्ञान मिल रहा है। एक मित्र ने गोदी मीडिया देखने की सलाह दी है। उन्हें लंबी पोस्ट फेक न्यूज़ लगती है। वक़्त तेज़ी से फ़िसल रहा है। विदेशी क़र्ज़ अदायगी की मियाद पास आ रही है। कोई नहीं सोच पा रहा है कि तब क्या होगा- जब बचा हुआ करीब 300 बिलियन का विदेशी मुद्रा भंडार दो महीने का भी आयात बिल भरने लायक न रहे।
उसका सीधा असर आपके किचन में तेल, अनाज और बाकी ज़रूरी सामानों पर पड़ेगा। 1 लीटर तेल 400 से ज़्यादा का हो तो ज़िन्दगी कितनी दुश्वार होती है, यह श्रीलंकाईओं से पूछिए। लूलू मॉल भी काम न आएगा। हां, इस देश के लिए दुआ और नमाज़ ज़रूर काम आ सकती है। इसे बचाकर रखिये। ज़ल्द ज़रूरत पड़ेगी। ज़ुल्म का विरोध अवाम के बस में नहीं है।