समाज की शर्म का पानी सूख चुका है?
सौमित्र रॉय
माफ़ कीजिये, पर कहने को मज़बूर हूं। ये बेशर्म समाज है। समाज की शर्म का पानी सूख चुका है। सूख चुके नाले में से आने वाली सड़ांध चारों ओर फ़ैली है। इसी सड़ांध से उपजा है बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व और उनके नेता। आप उनसे एलपीजी सिलेंडर पर अब बोलने की मांग क्यों करते हैं।
उन्होंने तो बस बीते 8 साल में इसी सड़ते नाले से निकली गंदगी UPA सरकार पर फेंकी है। अब जबकि कीचड़ में कमल खिल चुका है तो ज़ुबां कैसे खुलेगी? ट्विटर ने अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलने के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख क्या किया, भगवा ब्रिगेड ने इसे भारत की सार्वभौमिकता पर हमला मान लिया।
ट्विटर यहां कोई मोदी सरकार या भक्तों की माला जपने नहीं, कारोबार करने आया है। वह गाली देने, नफ़रत फैलाने और बकवास करने वाले चिन्टूओं और सवाल पूछने, फेक न्यूज़ को बेनकाब करने वालों दोनों पक्षों को मौका देता है। असल बात रीच और विश्वसनीयता की है। राणा अय्यूब का ट्वीट दुनियाभर में गंभीरता से पढ़ा जाता है और नरेंद्र मोदी का हंसकर, हैरत से मीम बनाकर उछाला जाता है।
मिर्ची यहीं लगती है, जब सरकार के दमन, गैरकानूनी फैसलों और अंधेरगर्दी को लेकर सवाल उठते हैं और विदेशी संसद में गूंजते हैं। लेकिन बिन पानी के सूख चुका हमारा समाज चाहता है कि ट्विटर झुककर फेसबुक बन जाये, ताकि लोग अपनी सड़ांध वहां भी फैला सकें।
ट्विटर अपनी दुकान लपेटकर निकल ले तो मोदीजी विदेश जाकर लोकतंत्र और फ्री स्पीच की बकवास कैसे करेंगे? ट्विटर को अब सारे फ़र्ज़ी, फेक न्यूज़ और नफरती हैंडल्स को एक झटके में बंद कर देना चाहिए।
साथ ही मोदी सरकार को सख़्त अल्टीमेटम देना चाहिए कि फ्री स्पीच के संवैधानिक अधिकार को गैरकानूनी तरीके से दबाने की कोशिश की तो हम दुकान बढ़ा लेंगे। फिर मोदी और भक्त कू एप या सुदर्शन चैनल पर जाकर पेट साफ़ करें।