दुनिया भर में कायम है बरकाती सिलसिला | Barkaati series continues all over the world
मारहरा में बरकातिया सिलसिले की शुरूआत सैय्यद शाह अब्दुल जलील से हुई लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व प्रकाशित पुस्तक सबा सनाबिल में लेखक मीर अब्दुल वाहिद सैय्यद शाह अब्दुल जलील और सैय्यद शाह बरकतुल्लाह के बारे में विस्तार से लिखा है सैय्यद शाह बरकुतुल्लाह हिन्दी और फारसी के अच्छे कवि थे। यह हिन्दी में पेमी फारसी में इश्की उपनाम लिखते थे। इनका हिन्दी रचना में पेम प्रकाश दीवान प्रकाशित हुआ जिसमें बृज भाषा में की गयीं शायरी को हिन्दी जगत में बहुत सराया गया।
शाह बरकतुल्लाह मोहल्ला कटरा स्थित आस्ताने में रहते थे इसी मोहल्ले में एक शातिर किस्म की एक गोंडल कोम रहती थी इस कोम का पेशा लूट पाट और राहजनी करना था। इस कोम ने अपने करतूतों से शाह बरकतुल्लाह को काफी परेशान किया जिस कारण शाह बरकतुल्लाह ने बस्ती छोड़कर जाने का फैसला कर लिया जब इसकी भनक जमीदार चौधरी वजीर मोहम्मद को लगी तो उन्होंने शाह बरकतुल्लाह को रोक लिया और आबादी से थोड़ी दूर एक आस्ताना तामिल करवाया और एक नई बस्ती बसाईं। जिस बस्ती को आज बस्ती पीर जाद्गान कहते है।
फर्रूखाबाद के नबाव मोहम्मद खां बंगश ने खानकाह की गुम्बद तामील कराईं यही आस्ताना आज दुनिया भर में खानकाहे बरकातिया के नाम से मशहूर है। इस खानकाह में एक गुम्बद के नीचे एक साथ सात कुतुब(आला दर्जे के बुुजुर्ग) के मजार मौजूद हैं जो किसी भी खानकाह में नही है इनमें सैय्यद शाह बरकतुल्लाह साहब, सैय्यद शाह आले मोहम्मद, सैय्यद शाह हमजा कादरी चिश्ती, अबुल फज्र आले अहमद अच्छे मियां, सैय्यद शाह आले बरकात सुथरे मियां, सैय्यद शाह आले रसूल अहमदी, सैय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी आराम फरमा है।
खानकाहे बरकातिया के पहले सज्जादा नशीन औलादे नबी मोहम्मद मियां कादरी बने इनके बाद यह गद्दी सैय्यद शाह हसन मियां कादरी को सोैंपी गयीं। सैय्यद शाह हसन मियां के निधन के बाद इस गद्दी पर प्रोफेसर सैय्यद अमीन मियां काबिज हैं। सैय्यद शाह अमीन मियां भी बरकाती सिलसिले को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। मस्लके आला हजरत के मानने वाले सभी लोग मारहरा शरीफ से अपना रूहानी रिश्ता मानते हैं। इसलिए खानकाहे बरकातिया को दुनिया भर में सुन्नी मुसलमानों का अहम मरकज माना जाता है।