मारहरा। विश्व विख्यात खानकाहे बरकातिया की दरगाह शरीफ लगभग 400 साल से भी अधिक पुरानी है। खानकाहे बरकातिया दुनिया भर में सुन्नी रूहानी राजधा...
मारहरा। विश्व विख्यात खानकाहे बरकातिया की दरगाह शरीफ लगभग 400 साल से भी अधिक पुरानी है। खानकाहे बरकातिया दुनिया भर में सुन्नी रूहानी राजधानी कहलाती है। अजमेर शरीफ, बगदाद शरीफ, बरेली शरीफ, किछौछा शरीफ, कालपी शरीफ आदि जगहों के तार मारहरा शरीफ से जुड़े हुए है।
खानकाहे बरकातिया दरगाह में एक गुम्बद के नीचे सात कुतुब और 161 वलियों व सूफी संतों की मजार शरीफ होना अपने आप दुनिया के लिए एक मिसाल है। उर्स में हजारों की तादाद में देश विदेश से जायरीन आते हैं। मारहरा शरीफ की दरगाह पिछले कई दशकों से दुनिया को अमन चैन का पैगाम दे रही है बिना किसी धार्मिक भेदभाव के हिन्दू मुस्लिम सभी धर्मो के लोग मारहरा शरीफ आते हैं और अपनी झोली मुरादों से भरकर ले जाते हैं।
खानकाहे बरकातिया में जो तबर्रूकात रखे हुए हैं वह बहुत ही सनदयाक्ता और नायाब हैं। इनकी एक झलक पाने के लिए लोग तरसते हैं। तबर्रूकात की जियारत केवल उर्स के मौकों पर ही कराई जाती है। तबर्रूकात में पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब और हजरत इमाम हसन, हजरत इमाम हुसैन के मौहे मुबारक (दाढी के बाल), हजरत अली का जुब्बा (कुर्ता), मुहम्मद साहब का कदमें मुबारक (पत्थर पर पैर का निशान) और गौशे पाक की तश्वीह के दाने व शाह बरकतउल्लाह की टोपी आदि मौजूद हैं। मोहे मुबारक मेरठ के नबाव खैरन्देश खां जुबैरी के दोसाखाने से खानकाहे बरकातिया मारहरा शरीफ आए हैं।
चमत्कारी पीलू के पेड़ की पत्तियां खाने से दूर हो जाते हैं रोग
मारहरा पीर फकीरों की बस्ती के नाम से दुनिया भर में मशहूर है। यहां सबसे पहले सेैय्यद जहीरउद्दीन पाकिस्तान से तशरीफ लाए। इनका मजार मोहल्ला कटरा में आज भी मौजूद है और इनके मजार पर आज भी एक चमत्कारी पीलू का पेड़ है जो चार दशक बाद भी अब तक हरा भरा है। इस चमत्कारी पीलू के पेड़ की खासियत यह है कि इस पेड़ की पत्तियों का कुछ दिन तक सेवन करने से पीलिया, शुगर, बुखार आदि रोग दूर हो जाते हैं। अकीदतमंद अपने रोगों को दूर करने के लिए पीलू के पत्तों का सेवन करते हैं और उन्हें बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है।
बजीर मोहम्मद जुबैरी के सपने में आए थे पैगम्बर-ए-इस्लाम
खुदा की इबादत में मशगूल रहने वाले बिलग्राम जिला हरदोई निवासी सैय्यद शाह अब्दुल जलील इबादत करते हुए मिरहची थाना क्षेत्र के गांव अतरंजी खेड़ा पहुंचे। वहां उन्हें इबादत के दौरान एक गैबी इशारा हुआ कि उन्हें मारहरा शरीफ का कुतुब नियुक्त किया जाता है तथा उसी रात मारहरा के जमींदार चौधरी बजीर मोहम्मद जुबैरी ने सपना देखा जिसमें पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब ने उनसे कहा कि वह उनके नवासे सैय्यद शाह अब्दुल जलील को मारहरा बुला लाएं।
उक्त सपना जमींदार को तीन रातों तक दिखाई दिया जब जमींदार डोली सजाकर सैय्यद शाह अब्दुल जलील को बुलाने गए तो वह उन्हें रास्ते में ही मिल गए। इस तरह सैय्यद शाह अब्दुल जलील वर्ष 1685 में मारहरा शरीफ आए। जमींदार चौधरी बजीर मोहम्मद ने मोहल्ला कटरा में उनके लिए एक आस्ताना बनवा दिया जिसमें वह इबादत किया करते थे। आज इस आस्ताने को बड़े पीर और दादा मियां की दरगाह के नाम से जाना जाता है।